महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 21 श्लोक 1-14

एकविंश (21) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)

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महाभारत: स्त्री पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


गान्धारी द्वारा कर्ण को देखकर उसके शौर्य तथा उसकी स्त्री के विलाप का श्रीकृष्ण के सम्मुख वर्णन


गान्धारी बोलीं- श्रीकृष्ण! देखो, यह महाधनुर्धर महारथी वैकर्तन कर्ण कुन्तीकुमार अर्जुन के तेज से बुझी हुई प्रज्वलित आग के समान युद्धस्थल में शान्त होकर सो रहा है। माधव! देखो, वैकर्तन कर्ण बहुत से अतिरथी वीरों का संहार करके स्वंय भी खून से लथपथ होकर पृथ्वी पर सोया पड़ा है। सूरवीर कर्ण महान बलवान और महान धनुर्धर था यह दीर्घकाल तक रोष में भरा रहने वाला और अमर्षशील था, परंतु गाण्डीवधारी अर्जुन के हाथ से मारा जाकर यह वीर रणभूमि में सो गया है। पाण्डु पुत्र अर्जुन के डर से मेरे महारथी पुत्र जिसे आगे करके यूथपति को आगे रखकर लड़ने वाले हाथियों के समान पाण्डव सेना के साथ युद्ध करते थे, उसी वीर को सव्यसाची अर्जुन ने समरांगण में उसी तरह मारा डाला है, जैसे एक सिंह ने दूसरे सिंह को तथा एक मतवाले हाथी ने दूसरे मदोन्मत गजराज को मार गिराया हो। पुरुषसिं! रणभूमि में मारे गये इस शूरवीर के पास आकर इसकी पत्नियाँ सिर के बाल बिखिरे हुए वैठी हुई रो रही हैं। माधव! जिसने निरन्तर उद्विग्न रहने के कारण धर्मराज युधिष्ठिर को चिंता के मारे तेरह वर्षों तक नींद नहीं आयी, जो युद्धस्थल में इन्द्र के समान शत्रुओं के लिये अजेय था, प्रलयंकर अग्नि के समान तेजस्वी और हिमालय के समान निश्चल था, वही वीर कर्ण धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन के लिये शरणदाता हो मारा जाकर आँधी से टूटकर पड़े हुए वृक्ष के समान धराशायी हो गया है।

देखो, कर्ण की पत्नि एवं वृषसेन की माता पृथ्वी पर गिरकर रोती हुई कैसा करुणा जनक विलाप कर रही है? प्राणनाथ! निश्‍चय ही तुम पर आचार्य का दिया हुआ शाप लागू हो गया, जिससे इस पृथ्वी ने तुम्हारे रथ के पहिये को ग्रस लिया, तभी युद्ध में शोभा पाने वाले अर्जुन ने रणभूमि में अपने बाण से तुम्हारा सिर काट लिया। हाय! हाय! मुझे धिक्कार है। सुवर्ण-कवचधारी उदार हृदय महाबाहु कर्ण इस अवस्था में देखकर अत्यन्त आतुर हो सुषेण की माता मूर्च्छित होकर गिर पड़ी। मानव शरीर का भक्षण करने वाले जन्तुओं ने खा-खा कर महामना कर्ण के शरीर को थोड़ा सा ही शेष रहने दिया है। उसका यह अल्पावशेष शरीर कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के चन्द्रमा की भाँति देखने पर हम लोगों को प्रसन्नता नहीं प्रदान करता है। वह बेचारी कर्ण की पत्नि पृथ्वी गिरकर उठी और उठकर पुनः गिर पड़ी। कर्ण का मुख सूँघती हुई यह नारी अपने पुत्र के वध से संतप्त हो फूट-फूट कर रो रही है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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