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महाभारत: द्रोण पर्व: चतु:सप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
जयद्रथ का भय तथा दुर्योधन और द्रोणाचार्य का उसे आश्वासन देना
- संजय कहते हैं- राजन! सिंधुराज जयद्रथ ने जब विजयाभिलाषी पाण्डवों का वह महान शब्द सुना और गुप्तचरों ने आकर जब अर्जुन की प्रतिज्ञा का समाचार निवेदन किया, तब वह सहसा उठकर खड़ा हो गया, उसका हृदय शोक से व्याकुल हो गया। वह दु:ख से व्याप्त हो शोक के विशाल एवं अगाध महासागर में डूबता हुआ-सा बहुत सोच-विचारकर राजाओं की सभा में गया और उन नरदेवों के समीप रोने बिलखने लगा। (1-3)
- जयद्रथ अभिमन्यु के पिता से बहुत डर गया था, इसलिये लज्जित होकर बोला– ‘राजाओ! कामी इन्द्र ने पाण्डु की पत्नी के गर्भ से जिसको जन्म दिया है, वह दुर्बुद्धि अर्जुन केवल मुझको ही यमलोक भेजना चाहता है, यह बात सुनने में आयी है। अत: आप लोगों का कल्याण हो। अब मैं अपने प्राण बचाने की इच्छा से अपनी राजधानी को चला जाऊँगा। (4-5)
- ‘अथवा क्षत्रियशिरोमणि वीरो! आप लोग अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान में अर्जुन के समान ही शक्तिशाली हैं। उधर अर्जुन ने मेरे प्राण लेने की प्रतिज्ञा की है। इस अवस्था में आप मेरी रक्षा करें और मुझे अभयदान दें।' (6)
- ‘द्रोणाचार्य, दुर्योधन, कृपाचार्य, कर्ण, मद्रराज शल्य, बाह्लक तथा दु:शासन आदि वीर मुझे यमराज के संकट से भी बचाने में समर्थ हैं। प्रिय नरेशगण! फिर अब अकेला अर्जुन ही मुझे मारने की इच्छा रखता है तो उसके हाथ से आप समस्त भूपतिगण मेरी रक्षा क्यों नहीं कर सकते हैं।' (7-8)
- ‘राजाओ! पाण्डवों का हर्षनाद सुनकर मुझे महान भय हो रहा है। मरणासन्न मनुष्य की भाँति मेरे सारे अंग शिथिल होते जा रहे हैं।' (9)
- ‘निश्चय ही गाण्डीवधारी अर्जुन ने मेरे वध की प्रतिज्ञा कर ली है, तभी शोक के समय भी पाण्डव योद्धा बड़े हर्ष के साथ गर्जना करते हैं।' (10)
- ‘उस प्रतिज्ञा को देवता, गन्धर्व, असुर, नाग तथा राक्षस भी पलट नहीं सकते हैं। फिर ये नरेश उसे भंग करने में कैसे समर्थ हो सकते हैं?' (11)
- ‘अत: नरश्रेष्ठ वीरो! आपका कल्याण हो। आप लोग मुझे जाने की आज्ञा दें। मैं अदृश्य हो जाऊँगा। पाण्डव मुझे नहीं देख सकेंगे।' (12)
- भय से व्याकुलचित्त होकर विलाप करते हुए जयद्रथ से राजा दुर्योधन ने अपने कार्य की गुरुता का विचार करके इस प्रकार कहा। (13)
- ‘पुरुषसिंह! नरश्रेष्ठ! तुम्हें भय नहीं करना चाहिये। युद्धस्थल में इन क्षत्रिय वीरों के बीच में खड़े रहने पर कौन तुम्हें मारने की इच्छा कर सकता है?' (14)
- ‘मैं, सूर्यपुत्र कर्ण, चित्रसेन, विविंशति, भूरिश्रवा, शल, शल्य, दुर्धर्ष वीर वृषसेन, पुरुमित्र, जय, भो, काम्बोजराज सुदक्षिण, सत्यव्रत, महाबाहु विकर्ण, दुर्मुख दु:शासन, सुबाहु, अस्त्र–शस्त्रधारी कलिंगराज, अवन्ती के दोनों राजकुमार विन्द और अनुविन्द, द्रोण, अश्वत्थामा और शकुनि– ये तथा और भी बहुत-से नरेशों जो विभिन्न देशों के अधिपति हैं, अपनी सेना के साथ तुम्हारी रक्षा के लिये चलेंगे। अत: तुम्हारी मानसिक चिन्ता दूर हो जानी चाहिये। (15-18)
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