महाभारत आदि पर्व अध्याय 226 श्लोक 1-17

षडविंशत्यधिकद्विशततम (226) अध्‍याय: आदि पर्व (खाण्डवदाह पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: षडविंशत्यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

देवताओं आदि के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! वर्षा करते हुए इन्द्र की उस जलधारा को अर्जुन ने अपने उत्तम अस्त्र का प्रदर्शन करते हुए बाणों की बौछार से रोक दिया। अमित आत्मबल से सम्पन्न पाण्डव अर्जुन ने बहुत से बाणों की वर्षा करके सारे खाण्डववन को ढँक दिया, जैसे कुहरा चन्द्रमा को ढक देता हैं। सव्यसाची अर्जुन के चलाये हुए बाणों से सारा आकाश छा गया था; इसलिये कोई भी प्राणी उस वन से निकल नहीं पाता था। जब खाण्डववन जलाया जा रहा था, उस समय महाबली नागराज तक्षक वहाँ नहीं था, कुरुक्षेत्र चला गया था। परंतु तक्षक का बलवान् पुत्र अश्वसेन वहीं रह गया था। उसने उस आग से अपने को छुड़ाने के लिये बड़ा भारी प्रयत्न किया। किंतु अर्जुन के बाणों से रुँध जाने के कारण वह बाहर निकल न सका। उसकी माता सर्पिणी ने उसे निगलकर उसे आग से बचाया। उसने पहले उसका मस्तक निगल लिया। फिर धीरे-धीरे पूँछ तक का भाग निगल गयी। निगलते-निगलते ही उस नागिन ने पुत्र को बचाने के लिये आकाश में उड़कर निकल भागने की चेष्टा की। परंतु पाण्डुकुमार अर्जुन ने मोटी धार वाले तीखे बाणों से उस भागती हुई सर्पिणी का मस्तक काट दिया। शचीपति इन्द्र ने उसकी यह अवस्था अपनी आँखों देखी। तब उसे छुड़ाने की इच्छा से वज्रधारी इन्द्र ने आँधी और वर्षा चलाकर पाण्डुकुमार अर्जुन को उस समय मोहित कर दिया।

इतने में ही तक्षक का पुत्र अश्वसेन उस संकट से मुक्त हो गया। तब उस भयानक माया को देखकर नाग से ठगे गये पाण्डुपुत्र अर्जुन ने आकाश में उड़ने वाले प्राणियों के दो-दो, तीन-तीन टुकडे़ कर डाले। फिर क्रोध में भरे हुए अर्जुन टेढ़ी चाल से चलने वाले उस नाग को शाप दिया- ‘अरे! तु आश्रयहीन हो जायगा।’ अग्नि और श्रीकृष्ण ने भी उसका अनुमोदन किया। तदनन्तर अपने साथ हुई वंचना को बार-बार स्मरण करके क्रोध में भरे हुए अर्जुन ने शीघ्रगामी बाणों द्वारा आकाश को आच्छादित करके इन्द्र के साथ युद्ध छेड़ दिया। देवराज ने भी अर्जुन को युद्ध में कुपित देख सम्पूर्ण आकाश को आच्छादित करते हुए अपने दुस्सह अस्त्र (ऐन्द्रास्त्र) को प्रकट किया। फिर तो बड़ी भारी आवाज के साथ प्रचण्ड वायु चलने लगी। उसने समस्त समुद्रों को क्षुब्ध करते हुए आकाश में स्थित हो मुसलाधार पानी बरसाने वाले मेघों को उत्पन्न किया। वे भयंकर मेघ बिजली की कड़कड़ाहट के साथ धरती पर वज्र गिराने लगे। उस अस्त्र के प्रतीकार की विद्या मे कुशल अर्जुन ने उन मेघों को नष्ट करने के लिये अभिमन्त्रित करके वायव्य नामक उत्तम अस्त्र का प्रयोग किया। उस अस्त्र ने इन्द्र के छोडे़ हुए वज्र और मेघों का ओज एवं बल नष्ट कर दिया। जल की वे सारी धाराएँ सूख गयीं और बिजलियाँ भी नष्ट हो गयीं। क्षणभर में आकाश धूल और अन्धकार से रहित हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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