महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 164 श्लोक 1-12

चतु:षष्‍टयधिकशततम (164) अध्‍याय: उद्योग पर्व (उलूकदूतागमनपर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: चतु:षष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद
पाण्‍डव सेना का युद्ध के मैदान में जाना और धृष्टद्युम्न के द्वारा योद्धाओं की अपने-अपने योग्‍य विपक्षियों के साथ युद्ध करने के लिये नियुक्ति
  • संजय कहते हैं- राजन! इधर उलूक की बातें सुनकर कुन्‍तीनन्‍दन युधिष्ठिर ने भी धृष्टद्युम्न के नेतृत्‍व में अपनी सेना का युद्ध के लिये प्रस्‍थान कराया। (1)
  • अर्जुन और भीमसेन आदि महारथी उसकी रक्षा करते थे। वह दुर्गम सेना धृष्टद्युम्न के अधीन थी और प्रशान्‍त एवं स्थिर समुद्र के समान जान पड़ती थी। (2)
  • उसके आगे-आगे रणदुर्मदर पांचाल राजकुमार महाधनुर्धर धृष्टद्युम्न चल रहे थे, जो सदा आचार्य द्रोण से युद्ध करने की इच्‍छा रखते थे। वे सारी सेना को अपने पीछे खींचे लिये जाते थे। (4)
  • उन्‍होंने जिस वीर का जैसा बल और उत्‍साह था, उसका विचार करते हुए अपने रथियों को योग्‍य प्रतिपक्षी के साथ युद्ध करने का आदेश दिया। अर्जुन को सूतपुत्र कर्ण का और भीमसेन को दुर्योधन का सामना करने के लिये नियुक्‍त किया। (5)
  • धृष्टकेतु को शल्‍य से, उत्तमौजा को कृपाचार्य से, नकुल को अश्वत्थामा से, शैवय को कृतवर्मा से, वृष्णिवंशी सात्‍यकि को सिन्‍धुराज जयद्रथ से और शिखण्‍डी को भीष्‍म से मुख्‍यत: युद्ध करने का आदेश दिया। (6-7)
  • सहदेव को शकुनि का, चेकितान को शल का और द्रौपदी के पांचों त्रिगतों का सामना करने के लिये नियत कर दिया। (8)
  • कर्णपुत्र वृषसेन तथा शेष राजाओं के साथ युद्ध करने का काम सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु को सौंपा, क्‍योंकि वे उसे युद्ध में अर्जुन से भी अधि‍क शक्तिशाली समझते थे। (9)
  • इस प्रकार समस्‍त योद्धाओं का पृथक-पृथक और एक साथ विभाजन करके सेनापतियों के पति प्रज्‍वलित अग्नि के समान कान्तिमान महाधनुर्धर धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य को अपने हिस्‍से में रखा। (10)
  • उनके मन में युद्ध के दृढ़ निश्‍चय था। मेधावी धृष्टद्यम्न ने पाण्‍डवों की पूर्वोक्‍त सेनाओं का विधिपूर्वक व्‍यूहरचना करके उन सबको युद्ध के लिये नियुक्‍त किया। तत्‍पश्‍चात ये पाण्‍डवों की विजय के लिये संनद्ध होकर समरांगण में खडे़ हुए। (11-12)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्‍तर्गत उलूकदूतागमन पर्व में सेनापति के द्वारा सैनिकों की युद्ध में नियुक्ति विषयक एक सौ चौंसठवा अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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