महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 166 श्लोक 1-19

षष्ट्यधिकशततम (165) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व )

Prev.png

महाभारत: द्रोणपर्व: षट्षष्ट्यधिकशततमअध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


सात्यकि के द्वारा भूरिका वध, घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध तथा भीम के साथ दुर्योधन का युद्ध एवं दुर्योधन का पलायन

संजय कहते हैं- राजन! जैसे कोई हाथी को उसके निकलने के स्थान से ही रोक दे, उसी प्रकार भूरि ने आक्रमण करते हुए रथियों में श्रेष्ठ सात्यकि को समरभूमि में आगे बढ़ने से रोक दिया। यह देख सात्यकि कुपित हो उठे और उन्होंने पाँच तीखे बाणों से भूरि की छाती छेद डाली। उससे रक्त की धारा बहने लगी। इसी प्रकार युद्धस्थल में कुरुवंशी भूरि ने भी रणदुर्मद सात्यकि की छाती में दस तीखे बाणों द्वारा गहरी चोट पहुँचायी। महाराज! उन दोनों के नेत्र क्रोध से लाल हो रहे थे। वे दोनों ही रोष से अपने-अपने धनुष खींचकर बाणों की वर्षा से एक-दूसरे को अत्यन्त घायल कर रहे थे। राजेन्द्र! उन दोनों पर अस्त्र-शस्त्रों की अत्यन्त भयंकर वर्षा हो रही थी। ये यम और अन्तक के समान कुपित हो परस्पर बाणों का प्रहार कर रहे थे। राजन! वे दोनों ही एक-दूसरे को बाणों द्वारा आच्छादित करके खड़े थे। दो घड़ी तक उनमें समान रूप से ही युद्ध चलता रहा। महाराज! तब क्रोध में भरे हुए सात्यकि ने हँसते हुए से समरागंण में महामना कुरुवंशी भूरि के धनुष को काट दिया।

धनुष कट जाने पर उसकी छाती में सात्यकि ने तुरंत ही नौ तीखे बाण मारे और कहा- ‘खड़ा रह, खड़ा रह’। बलवान शत्रु के आघात से अत्यन्त घायल हुए शत्रुतापन भूरि ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर सात्यकि को भी गहरी चोट पहुँचायी। प्रजानाथ! तीन बाणों से ही सात्यकि को घायल करके भूरि ने हँसते हुए से अत्यन्त तीखे भल्ल द्वारा उनके धनुष को भी काट दिया। महाराज! धनुष कट जाने पर क्रोधातुर हुए सात्यकि ने भूरि के विशाल वक्षःस्थल पर एक अत्यन्त वेगशालिनी शक्ति का प्रहार किया। उस शक्ति से भूरि के सारे अंग विदीर्ण हो गये और वह अपने उत्तम रथ से नीचे गिर पड़ा, मानो दैववश प्रदीप्त किरणों वाला मंगलग्रह आकाश से नीचे गिर गया हो। शूरवीर भूरि को युद्धस्थल में मारा गया देख महारथी अश्वत्थामा सात्यकि की ओर बड़े वेग से दौड़ा।

नरेश्वर! वह सात्यकि से ‘खड़ा रह, खड़ा रह’ ऐसा कहकर उनके ऊपर उसी प्रकार बाणसमूहों की वर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरु पर्वत पर जल बरसा रहा हो। क्रोध में भरे हुए अश्वत्थामा को सात्यकि के रथ पर आक्रमण करते देख महारथी घटोत्कच ने सिंहनाद करके कहा- ‘द्रोणपुत्र! खड़ा रह, खड़ा रह, मेरे हाथ से जीवित छूटकर नहीं जा सकेगा। जैसे कार्तिकेय ने महिषासुर का वध किया था, उसी प्रकार मैं भी तुझे मार डालूँगा। ‘आज समरागंण में मैं तेरी युद्धविषयक श्रद्धा दूर कर दूँगा।’ ऐसा कहर क्रोध से लाल आँखें किये, शत्रुवीरों का हनन करने वाले कुपित राक्षस घटोत्कच ने अश्वत्थामा पर उसी प्रकार धावा किया, जैसे सिंह किसी गजराज पर आक्रमण करता है। जैसे मेघ पर्वत पर जल की धारा गिराता है, उसी प्रकार घटोत्कच रथियों में श्रेष्ठ अश्वत्थामा पर रथ के धुरे के समान मोटे-मोटे बाणों की वर्षा करने लगा। परंतु अश्वत्थामा ने मुसकराते हुए समरभूमि में अपने ऊपर आयी हुई उस बाणवर्षा को विषधर सर्पों के समान भयंकर बाणों द्वारा वेगपूर्वक नष्ट कर दिया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः