महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 157 श्लोक 1-16

सप्‍तपञचाशदधिकशततम (157) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्‍तपञचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


कप नामक दानावों के द्वारा स्‍वर्गलोक पर अधिकार जमा लेने पर ब्राह्मणों का कपों को भस्‍म कर देना, वायुदेव और कार्तवीर्य अर्जुन के संवाद का उपसंहार

भीष्‍म जी कहते हैं- युधिष्ठिर! इतने पर भी कार्तवीर्य चुप ही रहा। तब वायु देवता ने फिर कहा– 'नरेश्‍वर! ब्राह्मणों के और भी जो श्रेष्‍ठ कर्म हैं, उनका वर्णन सुनो।

जब इन्‍द्र सहित सम्‍पूर्ण देवता मद के मुख में पड़ गये थे, उसी समय च्यवन ने उनके अधिकार की सारी भूमि हर ली थी (तथा कप नामक दानवों ने उनके स्वर्गलोक पर अधिकार जमा लिया था) अपने दोनों लोकों का अपहरण हुआ जान वे देवता बहुत दु:खी हो गये और शोक से आतुर हो महात्‍मा ब्रह्मा जी की शरण में गये।

देवता बोले- 'लोकपूजित प्रभो! जिस समय हम मद के मुख में पड़ गये थे, उस समय च्‍यवन ने हमारी भूमि हर ली थी और कप नामक दानवों ने स्‍वर्गलोक पर अधिकार कर लिया।'

ब्रह्मा जी ने कहा- 'इन्‍द्र सहित देवताओं! तुम लोग शीघ्र ही ब्राह्मणों की शरण में जाओ। उन्‍हें प्रसन्‍न कर लेने पर तुम लोग पहले की भाँति दोनों लोक प्राप्‍त कर लोगे।' तब देवता लोग ब्राह्मणों की शरण में गये।

ब्राह्मणों ने पूछा- ‘हम किनको जीतें?' उनके इस तरह पूछने पर देवताओं ने ब्राह्मणों से कहा- ‘आप लोग कप नामक दानवों को परास्‍त कीजिये।' तब ब्राह्मणों ने कहा- ‘हम उन दानवों को पृथ्‍वी पर लाकर परास्‍त करेंगे।' तदनन्‍तर ब्राह्मणों ने कप विनाशक कर्म आरम्‍भ किया।

इसका समाचार सुनकर कपों ने ब्राह्मणों के पास अपना धनी नामक दूत भेजा, उसने उन ब्राह्मणों से कपों का संदेश इस प्रकार कहा- ‘ब्राह्मणों! समस्‍त कप नामक दानव आप लोगों के ही समान हैं। फिर उनके विरुद्ध यहाँ क्‍या हो रहा है? सभी कप वेदों के ज्ञाता और विद्वान हैं। सब-के-सब यज्ञों का अनुष्‍ठान करते हैं। सभी सत्‍य प्रतिज्ञ हैं और सब-के-सब महर्षियों के तुल्‍य हैं। श्री उनके यहाँ रमण करती हैं और वे श्री को धारण करते हैं। वे परायी स्त्रियों से समागम नहीं करते। मांस को व्‍यर्थ समझकर उसे कभी नहीं खाते हैं। प्रज्‍वलित अग्नि में आहुति देते और गुरुजनों की आज्ञा में स्थित रहते हैं। वे सभी अपने मन को संयम में रखते हैं। बालकों को उनका भाग बाँट देते हैं। निकट आकर धीरे-धीरे चलते हैं। रजस्‍वला स्‍त्री का कभी सेवन नहीं करते। शुभकर्म करते हैं और स्वर्गलोक में जाते हैं। गर्भवती स्‍त्री और वृद्ध आदि के भोजन करने से पहले भोजन नहीं करते हैं। पूर्वाह्न में जुआ नहीं खेलते और दिन में नींद नहीं लेते हैं। इनसे तथा अन्‍य बहुत-से गुणों द्वारा संयुक्‍त हुए कप नामक दानवों को आप लोग क्‍यों पराजित करना चाहते हैं? इस अवांछनीय कार्य से निवृत्त होइये, क्‍योंकि निवृत्त होने से ही आप लोगों को सुख मिलेगा।'

तब ब्राह्मणों ने कहा- 'जो देवता हैं, वे हम लोग हैं; अत: देवद्रोही कप हमारे लिये वध्‍य हैं। इसलिये हम कपों के कुल को पराजित करेंगे। धनी! तुम जैसे आये हो उसी तरह लौट जाओ।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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