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महाभारत: सभा पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद
कुबेर की सभा का वर्णन
- नारद जी कहते हैं- राजन! कुबेर की सभा सौ योजन लंबी और सत्तर योजन चौड़ी है, वह अत्यन्त श्वेत प्रभा से युक्त है। (1)
- युधिष्ठिर! विश्रवा के पुत्र कुबेर ने स्वयं ही तपस्या करके उस सभा को प्राप्त किया है। वह अपनी धवल कान्ति से चन्द्रमा की चाँदनी भी तिरस्कृत कर देती है और देखने में कैलास शिखर -सी जान पड़ती है। (2)
- गुह्यकगण जब सभा को उठाकर ले चलते हैं, उस समय वह आकाश में सटी हुई- सी सुशोभित होती है। यह दिव्य सभा ऊँचे सुवर्णमय महलों से शोभायमान होती है। (3)
- महान रत्नों से उसका निर्माण हुआ है। उसकी झाँकी बड़ी विचित्र है। उससे दिव्य सुगन्ध फैलती रहती है और वह दर्शक के मन को अपनी ओर खींच लेती है। श्वेत बादलों के शिखर-सी प्रतीत होने वाली वह सभा आकाश में तैरती-सी दिखायी देती है। (4)
- उस दिव्य सभा की दीवारों विद्युत के समान उद्दीप्त होने वाले सुनहले रंगों से चित्रित की गयी हैं। (4 ½)
- उस सभा में सूर्य के समान चमकीले दिव्य बिछौनों से ढके हुए दिव्य पादपीठों से सुशोभित श्रेष्ठ सिंहासन पर कानों में ज्योति से जगमगाते कुण्डल और अंगों में विचित्र वस्त्र एवं आभूषण धारण करने वाले श्रीमान राजा वैश्रवण[1] सहस्रों स्त्रियों से घिरे हुए बैठते हैं। (5-6)
- उदार[2] मन्दार वृक्षों के वनों को आन्दोलित करता तथा सौगन्धिक कानन, अलका नामक पुष्करिणी और नन्दन वन की सुगन्ध का भार वहन करता हुआ हृदय को आनन्द प्रदान करने वाला गन्धवाही शीतल समीर उस सभा में कुबेर की सेवा करता है। (7)
- महाराज! देवता और गन्धर्व अप्सराओं के साथ उस सभा में आकर दिव्य तानों से युक्त गीत गातें हैं। (9)
- मिश्वकेशी, रम्भा, चित्रसेना, शुचिस्मिता, चारूनेत्रा, घृताची, मेनका, पुन्जिकस्थला, विश्वाची, सहजन्या, प्रम्लोचा, उर्वशी, इरा, वर्ग, सौरभेयी, समीची, बुद्बुदा तथा लता आदि नृत्य और गीत में कुशल सहस्रों अप्सराओं और गन्धर्वों के गण कुबेर की सेवा में उपस्थित होते हैं।
गन्धर्व और अप्सराओं के समुदाय से भरी तथा दिव्य वाद्य, नृत्य एवं गीतों से निरन्तर गूँजती हुई कुबेर की वह सभा बड़ी मनोहर जान पड़ती है। (10-12)
- किन्नर तथा नर नाम वाले गन्धर्व, मणिभद्र, धनद, श्वेतभद्र गुह्यक, कशेरक, गण्डकण्डू, महाबली प्रद्योत, कुस्तुम्बुरू पिशाच, गजकर्ण, विशालक, वराहकर्ण, ताम्रोष्ठ, फलकक्ष, फलोदक, हंसचूड़, शिखावर्त, हेमनेत्र, विभीषण, पुष्पानन, पिंगलक, शोणितोद, प्रवालक, वृक्षवासी, अनिकेत तथा चीरवासा, भारत! ये तथा दूसरे बहुत-से यक्ष लाखों की संख्या में उपस्थित होकर उस सभा में कुबेर की सेवा करते हैं। (13-18)
- धन-सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी भगवती लक्ष्मी, नलकूबर, मैं तथा मेरे-जैसे और भी बहुत-से लोग प्रायः उस सभा में उपस्थित होते हैं। (19)
- ब्रह्मर्षि, देवर्षि तथा अन्य ऋषिगण उस सभा में विराजमान होते हैं। इनके सिवा, बहुत-से पिशाच और महाबली गन्धर्व वहाँ लोकपाल महात्मा धनद की उपासना करते हैं। (20 ½)
- नृपश्रेष्ठ! लाखों भूत समूहों से घिरे हुए उग्र धनुर्धर महाबली पशुपति[3], शूलधारी, भगदेवता के नेत्र नष्ट करने वाले तथा त्रिलोचन भगवान उमापति और क्लेशरहित देवी पार्वती ये दोनों वामन विकट, कुब्ज, लाल नेत्रों वाले, महान कोलाहल करने वाले, मेदा और मांस खाने वाले, अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले तथा वायु के समान महान वेगशाली भयानक भूतप्रेतादि के साथ उस सभा में सदैव धन देने वाले अपने मित्र कुबेर के पास बैठते हैं। (21-24)
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