त्रिपंचाशत्तम (53) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
नरेश्वर! फिर वहाँ निश्चेष्ट खड़ी हुई आपकी वह सेना भाँति-भाँति पुष्पों से भरे हुए चैत्ररथ नामक वन के समान शोभा पाने लगे। कुरुश्रेष्ठ! तदनन्तर होश में आकर आपके योद्धा अर्जुन पर उसी प्रकार बाणों की बौछार करने लगे, जैसे बादल पर्वत पर जल की वर्षा करते हैं। उन सबने मिलकर पाण्डुपुत्र अर्जुन के उस विशाल रथ को घेर लिया। यद्यपि उन पर तीखे बाणों की मार पड़ रही थी, तो भी वे उस रथ को पकड़कर जोर-जोर से चिल्लाने लगे। माननीय नरेश! क्रोध में भरे हुए संशप्तकों ने सब ओर से आक्रमण करके अर्जुन के रथ को घोड़ों, दोनों पहियों तथा ईषादण्ड को भी पकड़ना आरम्भ किया। इस प्रकार वे सब हजारों योद्धा रथ को जबरदस्ती पकड़कर सिंहनाद करने लगे। महाराज! कई योद्धाओं ने भगवान श्रीकृष्ण की दोनों विशाल भुजाएं पकड़ ली। दूसरों ने रथ पर बैठे हुए अर्जुन को भी प्रसन्नतापूर्वक पकड़ लिया। तब जैसे दुष्ट हाथी महावतों को नीचे गिरा देता है, उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दोनों बांहें झटककर उन सब लोगों को युद्ध के मुहाने पर नीचे गिरा दिया। फिर उन महारथियों से घिरे हुए अर्जुन अपने रथ को पकड़ा गया और श्रीकृष्ण पर भी आक्रमण हुआ देख रणभूमि में कुपित हो उठे। उन्होंने अपने रथ पर चढ़े हुए बहुत से पैदल सैनिकों को धक्के देकर नीचे गिरा दिया और आसपास खड़े हुए संशप्तक योद्धाओं को निकट से युद्ध करने में उपयोगी बाणों द्वारा ढक दिया एवं समरांगण में भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा- ‘महाबाहु श्रीकृष्ण! देखिये, ये क्रुरतापूर्ण कर्म करने वाले बहुसंख्यक संशप्तक योद्धा किस प्रकार सहस्त्रों की संख्या में मारे जा रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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