महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 207 श्लोक 1-19

सप्‍ताधिकद्विशततम (207) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

Prev.png

महाभारत: शान्ति पर्व: सप्‍ताधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्‍ण से सम्‍पूर्ण भूतों की उत्‍पत्ति का तथा उनकी महिमा का कथन

युधिष्ठिर ने कहा– भरतश्रेष्‍ठ! महाप्राज्ञ पितामह! कमलनयन भगवान श्रीकृष्‍ण अपनी महिमा से कभी च्‍युत न होने वाले, सबके कर्ता, अकृत (नित्‍य सिद्ध), सर्वव्‍यापी तथा सम्‍पूर्ण भूतों की उत्‍पत्ति और प्रलय के स्‍थान है। ये कभी किसी से पराजित नहीं होते। ये ही नारायण, हषीकेश, गोविन्‍द और केशव–इन नामों से भी विख्‍यात हैं। मैं इनके स्‍वरूप का तात्त्विक विवेचन सुनना चाहता हूँ। भीष्‍म जी बोले- युधिष्ठिर! मैंने इन विषय का विवेचन जमदग्निनन्‍दन परशुराम, देवर्षि नारद तथा श्रीकृष्‍णद्वैपायन व्‍यासजी के मुंह से सुना है। तात! असित, देवल, महातपस्‍वी वाल्मीकि और महर्षि मार्कण्‍डेयजी भी इन भगवान गोविन्‍द के विषय में बड़ी अद्भुत बातें कहा करते हैं। भरतश्रेष्‍ठ! भगवान श्रीकृष्‍ण सबके ईश्‍वर और प्रभु हैं। श्रुति में ‘पुरुष एवे सर्वम’[1] इत्‍यादि वचनों द्वारा इन्‍हीं सर्वव्‍यापी श्रीकृष्‍ण की महिमा का नाना प्रकार से निरूपण किया गया है। महाबाहु युधिष्ठिर! जगत में शार्गधनुष धारण करने वाले श्रीकृष्‍ण के जिन माहात्‍म्‍यों को ब्राह्मण लोग जानते है, उन्‍हें बताता हूं, सूनो। नरेन्‍द्र! पुराणवेत्‍ता पुरुष गोविन्‍द की जिन-जिन लीलाओं तथा चरित्रों का वर्णन करते हैं, उनका मैं यहाँ वर्णन करूँगा। सम्‍पूर्ण भूतों के आत्‍मा महात्‍मा पुरुषोतम ने आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्‍वी–इन पांच महाभूतों की रचना की है।

सर्वभूतेश्‍वर, प्रभु, महात्‍मा पुरुषोतम ने इस पृथ्‍वी की सृष्टि करके जल में ही अपना निवास स्‍थान बनाया। उसमें शयन करते हुए सर्वतेजोमय पुरुषोतम श्रीकृष्‍ण ने मन से ही सम्‍पूर्ण प्राणियों के अग्रज तथा आश्रय संकर्षण को उत्‍पन्‍न किया,यह हमने सुना है। वे संकर्षण ही समस्‍त भूतों को धारण करते है तथा वे ही भूत और भविष्‍य के भी आधार हैं। उन महाबाहु महात्‍मा संकर्षण का प्रादुर्भाव होने के पश्‍चात श्री हरि की नाभि से एक दिव्‍य कमल प्रकट हुआ, जो सूर्य के समान प्रकाशमान था। तात! उस कमल से सम्‍पूर्ण दिशाओं को प्रकाशित करते हुए समस्‍त प्राणियों के पितामह देवस्‍वरूप भगवान ब्रह्मा उत्‍पन्‍न हुए। उन महाबाहु महात्‍मा ब्रह्माजी की भी उत्‍पत्ति हो जाने पर वहाँ तमोगुण से मधु नामक महान असुर प्रकट हुआ, जो असुरों का पूर्वज था। उसका स्‍वभाव बड़ा ही उग्र था। वह सदा ही भयानक कर्म करने वाला था। भयंकर कर्म करने का निश्‍चय लेकर आये हुए उस असुर को पुरुषोतम भगवान विष्‍णु ने ब्रह्माजी का हित करने के लिये मार डाला। तात! उस मधु का वध करके के कारण ही सम्‍पूर्ण देवता, दानव और मानव– इन सर्वसात्‍वतशिरोमणि श्रीकृष्‍ण को मधुसूद कहते है।

ब्रह्माजी ने सात मानस पुत्रों को उत्‍पन्‍न किया, जिनमें दक्ष प्रजापति सातवें थे (ये ही सबसे प्रथम उत्‍पन्‍न हुए थे)। शेष छ: पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं– मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु। तात! इन छ: पुत्रों में सबसे बड़े थे मरीचि। उन्‍होंने अपने मन से ही ब्रह्मावेत्‍ताओं में श्रेष्‍ठ कश्‍यप नामक श्रेष्‍ठ पुत्र को जन्‍म दिया, जो बड़े ही तेजस्‍वी हैं। भरतश्रेष्‍ठ! ब्रह्माजी ने दक्ष को अपने अँगूठे से उत्‍पन्‍न किया था। वे मरीचि से भी बड़े थे। इसलिये प्रजापति के पद पर दक्ष प्रतिष्ठित हुए।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः