अष्टाधिकद्विशततम (208) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टाधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
ब्रह्मा के पुत्र मरीचि आदि प्रजापतियों के वंश का तथा प्रत्येक दिशा में निवास करने वाले महर्षियों का वर्णन युधिष्ठिर ने पूछा– भरतश्रेष्ठ! पूर्वकाल में कौन कौन से लोग प्रजापति थे और प्रत्येक दिशा में किन-किन महाभाग महर्षियों की स्थिति मानी गयी है। भीष्म जी ने कहा– भरतश्रेष्ठ! इस जगत में जो प्रजापति रहे हैं तथा सम्पूर्ण दिशाओं में जिन-जिन ऋषियों की स्थिति मानी गयी है, उन सबको जिनके विषय में तुम मुझसे पूछते हो; मैं बताता हूँ, सूनो। एकमात्र सनातन भगवान स्वयम्भू ब्रह्मा सबके आदि हैं। स्वयम्भू ब्रह्मा के सात महात्मा पुत्र बताये गये हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु तथा महाभाग वसिष्ठ। ये सभी स्वयम्भू ब्रह्मा के समान ही शक्तिशाली हैं। पुराण में ये साम ब्रह्मा निश्चित किये गये हैं। अब मैं समस्त प्रजापतियों का वर्णन आरम्भ करता हूँ। अत्रिकुल मे उत्पन्न जो सनातन ब्रह्मयोनि भगवान प्राचीनबर्हि हैं, उनसे प्रचेता नाम वाले दस प्रजापति उत्पन्न हूँ। उन दसों के एकमात्र पुत्र दक्ष नाम से प्रसिद्ध प्रजापति हैं। उनके दो नाम बताये जाते है – ‘दक्ष’ और ‘क’ मरीचि के पुत्र जो कश्यप है, उनके भी दो नाम माने गये हैं। कुछ लोग उन्हें अरिष्टनेमि कहते हैं और दूसरे लोग उन्हें कश्यप के नाम से जानते हैं। अत्रि के औरस पुत्र श्रीमान और बलवान राजा सोम हुए, जिन्होंने सहस्त्र दिव्य युगों तक भगवान की उपासना की थी। प्रभो! भगवान अर्यमा और उनके सभी पुत्र-ये प्रदेश (आदेश देनेवाले शासक) तथा प्रभावन (उत्तम स्त्रष्टा) कहे गये हैं। धर्म से विचलित न होने वाले युधिष्ठिर! शशबिन्दु के दस हजार स्त्रियाँ थी। उनमें से प्रत्येक के गर्भ से एक-एक हजार पुत्र उत्पन्न हुए। इस प्रकार उन महात्मा के एक करोड़ पुत्र थे। वे उनके सिवा किसी दूसरे प्रजापति की इच्छा नहीं करते थे। प्राचीनकाल के ब्राह्मण अधिकांश प्रजा की उत्पत्ति शशबिन्दु से ही बताते हैं। प्रजापति का वह महान वंश ही वृष्णिवंश का उत्पादक हुआ। युधिष्ठिर! ये सब यशस्वी प्रजापति बताये गये हैं ।अब मैं तीनो लोको पर शासन करने वाले देवताओं का परिचय दूँगा। भग, अंश, अर्यमा, मित्र, वरुण, सविता, धाता, महाबली विवस्वान, त्वष्टा, पूषा, इन्द्र और बारहवें विष्णु कहे गये हैं। ये बारह आदित्य हैं, जो कश्यप और अदिति के पुत्र हैं। नासत्य और दस्त्र ये दोनो अश्विनीकुमार बताये गये हैं। ये दोनों अष्टम आदित्य महात्मा सूर्य के पुत्र है। ये तथा पूर्वोक्त देवता दो प्रकार के पितर माने गये हैं। त्वष्टा के पुत्र महायशस्वी श्रीमान विश्वरूप हुए। अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, विरूपाक्ष, रैवत, हर, बहुरूप, त्रयम्बक, सुरेश्वर, सावित्र, जयन्त, पिनाकी और अपराजित ये ग्यारह रुद्र हैं। महाभाग आठ वसुओं के नाम पहले ही बताये गये हैं। इस प्रकार ये देवता प्रजापति मनु की ही संतान हैं। वे तथा पूर्वोक्त देवता ये दो प्रकार के पितर माने गये हैं। देवताओं में एक वर्ग ऐसा है, जो सुन्दर शील-स्वभाव और अक्षय यौवन से सम्पन्न है। दूसरा वर्ग सिद्धों और साध्यों का हैं। ऋभु और मरूत ये देवताओं के समुदायों के नाम हैं। इसी प्रकार ये विश्वेदेव और अश्विनीकुमार भी देवताओं के गण माने गये हैं। इन देवताओं में आदित्यगण क्षत्रिय और मरूद्गगण वैश्य माने जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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