महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 12 श्लोक 1-18

द्वादश (12) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

Prev.png

महाभारत उद्योग पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

देवता-नहुष-संवाद, बृहस्पति के द्वारा इन्द्राणी रक्षा तथा इन्द्राणी का नहुष के पास कुछ समय की अवधि माँगने के लिये जाना

शल्य कहते हैं- युधिष्ठिर! देवराज नहुष को क्रोध में भरे हुए देख देवता लेाग ऋषियों को आगे करके उनके पास गये। उस समय उनकी दृष्टि बड़ी भयंकर प्रतीत होती थी। देवताओं तथा ऋषियों ने कहा। 'देवराज! आप क्रोध छोड़ें। प्रभो! आपके कुपित होने से असुर, गन्धर्व, किन्नर ओर महानागगणों सहित सम्पूर्ण जगत भयभीत हो उठा है।' 'साधो! आप इस क्रोध को त्याग दीजिये। आप जैसे श्रेष्ठ पुरुष दूसरों पर कोप नहीं करते हैं। अतः प्रसन्न होइये। सुरेश्वर! शची देवी दूसरे इन्द्र की पत्नी हैं। 'परायी स्त्रियों का स्पर्श पापकर्म है। उससे मन को हटा लीजिये। आप देवताओं के राजा हैं। आपका कल्याण हो। आप धर्मपूर्वक प्रजा का पालन कीजिये।' उनके ऐसा कहने पर भी काममोहित नहुष ने उनकी बात नहीं मानी। उस समय देवेश्वर नहुष ने इन्द्र के विषय में देवताओं से इस प्रकार कहा- 'देवताओ! जब इन्द्र ने पूर्वकाल में यशस्विनी ऋषि- पत्नी अहल्या उसके पति गौतम के जीते-जी सतीत्व नष्ट किया था, उस समय आप लोगों ने उन्‍हें क्यों नहीं रोका? 'प्राचीनकाल में इन्द्र ने बहुत से क्रूरतापूर्ण कर्म किये हैं। अनेक अधार्मिक कृत्य तथा छल-कपट उनके द्वारा हुए हैं। उन्हें आप लोगों ने क्योें नहीं रोका था? 'शची देवी मेरी सेवा में उपस्थित हों। इसी में इनका परम हित है तथा देवताओ! ऐसा होने पर ही सदा तुम्हारा कल्याण होगा।'

देवता बोले- स्वर्ग लोक के स्वामी वीर देवेश्वर! आपकी जैसी इच्छा है, उसके अनुसार हम लोग इन्द्राणी को आपकी सेवा में ले आयेंगे। आप यह क्रोध छोड़िये और प्रसन्न होइये।

शल्य ने कहा- युधिष्ठिर! नहुष से ऐसा कहकर उस समय सब देवता ऋषियो के साथ इन्द्राणी से यह व अशुभ वचन कहने के लिये बृहस्पतिजी के पास गये। उन्होंने कहा- 'देवर्षिप्रवर! विप्रेन्द्र! हमें पता लगा है कि इन्द्राणी आपकी शरण में आयी हैं और आपके ही भवन में रही हैं। आपने उन्हें अभय-दान दे रक्खा है। 'महाद्युते! अब ये देवता, गन्धर्व तथा ऋषि आपको इस बात के लिये प्रसन्न करा रहे हैं कि आप इन्द्राणी को राजा नहुष की सेवा में अर्पण कर दीजिये। 'इस समय महातेजस्वी नहुष देवताओं के राजा हैं। अतः इन्द्र से बढ़कर हैं। सुन्दर रूप रंग वाली शची इन्‍हें अपना पति स्वीकार कर लें।' 'देवताओं के यह बात कहने पर शची देवी आँसू बहाती हुई फूट-फूटकर रोने लगीं और दीनभाव से बृहस्पतिजी को सम्बोधित करके इस प्रकार बोलीं- 'देवर्षियों में श्रेष्ठ ब्राह्मणदेव! मैं नहुष को अपना पति बनाना नहीं चाहती; इसीलिए आपकी शरण में आयी हूँ। आप इस महान भय से मेरी रक्षा कीजिये।'

बृहस्पति ने कहा- इन्द्राणी! मैं शरणागत का त्याग नहीं कर सकता, यह मेरा दृढ़ निश्चय है। अनिन्दिते! तुम धर्मज्ञ और सत्यशील हो; अतः मैं तुम्हारा त्याग नहीं करूँगा। विशेषतः ब्राह्मण होकर मैं यह न करने योग्य कार्य नहीं कर सकता। मैंने धर्म की बातें सुनी हैं और त्याग को अपने स्वभाव में उतार लिया है। शास्त्रों में जो धर्म का उपदेश किया है, उसे भी जानता हूँ; अतः मैं यह पापकर्म नहीं करूँगा। सुरश्रेष्ठगण! आप लोग लौट जायँ। इस विषय में ब्रह्मजी ने पूर्वकाल में जो गीत गाया था, वह इस पर प्रकार है, सुनिये। जो भयभीत होकर शरण में आये हुए प्राणी को उसके शत्रु के हाथ में दे देता है, उसका बोया हुआ बीज समय पर नहीं जमता है। उसके यहाँ ठीक समय पर वर्षा नहीं होती और वह जब कभी अपनी रक्षा चाहता है, तो उसे कोई रक्षक नहीं मिलता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः