महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 12 श्लोक 19-32

द्वादश (12) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 19-32 का हिन्दी अनुवाद

जो भयभीत शरणागत को शत्रु के हाथ में सौंप देता है, वह दुर्बलचित्त मानव जो अन्न ग्रहण करता है, वह व्यर्थ हो जाता है। उसके सारे उद्यम नष्ट हो जाते हैं और स्वर्ग लोक से नीचे गिर जाता है। इतना ही नहीं देवता लोग उसके दिये हुये हविष्य को स्वीकार नहीं करते हैं। उसकी संतान अकाल में ही मर जाती है। उसके पितर सदा नरक में निवास करते हैं। जो भयभीत शरणागत को शत्रु के हाथ में दे देता है, उस पर इन्द्र आदि देवता वज्र का प्रहार करते हैं। इस प्रकार ब्रह्मजी के उपदेश के अनुसार शरणागत के त्याग से होने वाले अधर्म को मैं निश्चित रूप से जानता हूँ; अतः जो सम्पूर्ण विश्व में इन्द्र की पत्नी तथा देवराज की प्यारी पटरानी के रूप में विख्यात हैं, उन्‍हीं इन शची देवी को मैं नहुष के हाथ में नहीं दूँगा। श्रेष्ठ देवताओ! जो इनके लिये हितकर हो, जिससे मेरा भी हित हो, वह कार्य आप लोग करें। मैं शची को कदापि नहीं दूँगा।

शल्य कहते हैं- राजन! तब देवताओं तथा गन्धर्वों ने गुरु से इस प्रकार कहा- बृहस्पते! आप ही सलाह दीजिये कि किस उपाय का अवलम्बन करने से शुभ परिणाम होगा?

बृहस्पति जी ने कहा- देवगण! शुभलक्षणा शची देवी नहुष से कुछ समय की अवधि माँगे। इसी से इनका और हमारा भी हित होगा। देवताओ! समय अनेक प्रकार के विध्नों से भरा होता है। इस समय नहुष आप लोगों के वरदान के प्रभाव से बलवान और गर्बीला हो गया है। काल ही उसे काल के गाल में पहुँचा देगा।

शल्य कहते हैं- राजन! उनके इस प्रकार सलाह देने पर देवता बड़े प्रसन्न हुए और इस प्रकार बोले- 'ब्रह्मन! आपने बहुत अच्छी बात कही है। इसी में सम्पूर्ण देवताओं का हित है।' 'द्विजश्रेष्ठ! इसी बात के लिये शची देवी को राजी कीजिये।' तदनन्तर अग्नि आदि सब देवता इन्द्राणी के पास जा समस्त लोेकों के हित के लिये शान्तभाव से इस प्रकार बोले।

देवता बोले- देवि! यह समस्त चराचर जगत तुमने ही धारण कर रक्खा है, कयोंकि तुम पतिव्रता और सत्यपरायणा हो। अतः तुम नहुष के पास चलो। देवेश्वरि! तुम्हारी कामना करने के कारण पापी नहुष शीघ्र नष्ठ हो जायेगा ओर इन्द्र पुनः अपने देवसाम्राज्य को प्राप्त कर लेंगे। अपनी कार्य सिद्धि के लिये ऐसा निश्चय करके इन्द्राणी भयंकर दृष्टि वाले नहुष के पास बड़े संकोच के साथ गयी। नयी अवस्था और सुन्दर रूप से सुशोभित इन्द्राणी को देखकर दुष्टात्मा नहुष बहुत प्रसन्न हुआ। काम भावना से उसकी बुद्धि मारी गयी थी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योग पर्व के अन्तर्गत सेनोद्योग पर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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