द्विसप्ततितम (72) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: द्विसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद
महाराज। आपके पुत्र द्वारा ठगे गये महारथी राजा युधिष्ठिर ने संग्राम में गजसेना पर आक्रमण किया। माद्रीकुमार पाण्डुनन्दन नकुल युद्ध में बड़े-बड़े शूरवीरों को रुलाने वाले थे। उन्होंने त्रिगर्तों की सेना के साथ युद्ध ठाना। सात्यकि, चेकितान और महारथी अभिमन्यु ने समरभूमि में कुपित होकर शालवों तथा केकयों पर धावा किया। धृष्टकेतु, राक्षस घटोत्कच और नकुलपुत्र श्रेष्ठ रथी शतानीक- इन अत्यन्त दुर्जय वीरों ने समरांग में आपकी रथ सेना पर आक्रमण किया। राजन्! अनन्त आत्मबल से सम्पन्न पाण्डव-सेनापति महाबली धृष्टद्युम्न ने संग्राम भूमि में भयंकर कर्म करने वाले द्रोणाचार्य से लोहा लिया। इस प्रकार ये आपके महाधनुर्धर शूरवीर योद्धा पाण्डवों के साथ समरभूमि में युद्ध करने लगे। सूर्य देव दिन के मध्यभाग में आ गये। आकाश तपने लगा। परंतु उस समय भी कौरव तथा पाण्डव एक-दूसरे को मार रहे थे। जिन पर ध्वजा और पताकाएँ फहरा रही थीं, जिनका एक-एक अवयव सुवर्णभूषित हो विचित्रशोभा धारण करता था तथा जिन पर व्याघ्र के चर्म का आवरण पड़ा हुआ था, ऐसे अनेक रथ उस समरांण में विचरते हुए शोभा पा रहे थे। समर में एक-दूसरे से भिड़कर परस्पर विजय पाने की इच्छा वाले शूरवीर सिंह के समान गर्जना कर रहे थे और उनका वह तुमुल नाद सब ओर गूँज रहा था। राजन्! हमने वहाँ अत्यन्त भयंकर और अद्भुत संग्राम देखा, जिसे रणवीर सृजयों ने कौरवों के साथ किया था। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! वहाँ चारों ओर इतने बाण छोड़े गये थे कि उनसे आच्छादित हो जाने के कारण हम आकाश, सूर्य, दिशा तथा विदिशाओं को भी नहीं देख पाते थे। चमकती हुई धारवाली शक्तियाँ, चलाये जाते हुए तोमरों और पानीदार तलवारों की प्रभा नील कमल के समान सुशोभित हो रही थीं। वे तथा विचित्र कवचों और आभूषणों के प्रभासमूह आकाश, दिशा एवं कोणों को अपने तेज से प्रकाशित कर रहे थे। राजन्! चन्द्रमा और सूर्य के समान प्रकाशित होने वाले राजाओं के शरीरों से वह समरांण यत्र-तत्र सर्वत्र शोभा पा रहा था। राजन्! रथों के समूह और नरश्रेष्ठ नरेशगण युद्ध में आते हुए उसी प्रकार शोभा पा रहे थे, जैसे आकाश में ग्रह-नक्षत्र सुशोभित होते हैं। रथियों में श्रेष्ठ भीष्म ने कुपित होकर सब सेनाओं के देखते-देखते महाबली भीमसेन को रोक दिया। उस समय पत्थर पर रगड़कर तेज किये हुए, सुवर्णमय पंख से युक्त और तेल के धोये तीखे बाण भीष्म के हाथों से छूटकर समरभूमि में भीमसेन को चोट पहुँचाने लगे। भारत! तब महाबली भीमसेन ने क्रोध में भरे हुए विषधर सर्प के समान भयंकर महावेगशालिनी शक्ति भीष्म पर छोड़ी। उसमें सोने का डंडा लगा हुआ था। उसको सह लेना बहुत ही कठिन था। उसे सहसा आते देख भीष्म ने झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा युद्ध भूमि में काट गिराया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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