एकोनपंचाशत्तम (49) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
उस समय युधिष्ठिर ने क्रोध से लाल आंखें करके शत्रुवीरों का संहार करने वाले कर्ण से, जो पास ही रोक दिया गया था, इस प्रकार कहा। ‘कर्ण! कर्ण! मिथ्यादर्शी सूतपुत्र! मेरी बात सुनो। तुम संग्राम में वेगशाली वीर अर्जुन के साथ सदा डाह रखते और दुर्योधन के मत में रहकर सर्वदा हमें बाधा पहुँचाते हो। ‘परंतु आज तुम्हारे पास जितना बल हो, जो पराक्रम हो तथा पाण्डवों के प्रति तुम्हारे मन में जो विद्वेष हो, वह सब महान पुरुषार्थ का आश्रय लेकर दिखाओ। आज महासमर में मैं तुम्हारा युद्ध का हौसला मिटा दूंगा। महाराज! ऐसा कहकर पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर ने लोहे के बने हुए सुवर्ण पंखयुक्त दस बाणों द्वारा कर्ण को बींध डाला। भारत। तब शत्रुओं का दमन करने वाले महाधनुर्धर सूतपुत्र ने हंसते हुए से वत्सं दन्त नामक दस बाणों द्वारा युधिष्ठिर को घायल कर दिया। माननीय नरेश! सुतपुत्र के द्वारा अवज्ञापूर्वक घायल किये जाने पर फिर राजा युधिष्ठिर घी की आहुति से प्रज्वलित हुई अग्नि के समान क्रोध से जल उठे। ज्वालामालाओं से घिरा हुआ युधिष्ठिर का शरीर प्रलय काल में जगत को दग्ध करने की इच्छावाले द्वितीय संवर्तक अग्नि के समान दिखायी देता था। तदनन्तर उन्होंने अपने सुवर्णभूषित विशाल धनुष को फैलाकर उस पर पर्वतों को भी विदीर्ण कर देनेवाले तीखे बाण का संधान किया। तत्पश्चात राजा युधिष्ठिर ने सूतपुत्र को मार डालने की इच्छा से तुरंत ही धनुष को पूर्णरुप से खींचकर वह यमदण्डि के समान बाण उसके ऊपर छोड़ दिया। वेगवान युधिष्ठिर का छोड़ा हुआ व्रज और बिजली के समान शब्द करने वाला वह बाण सहसा महारथी कर्ण की बायीं पसली में घुस गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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