महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 49 श्लोक 21-39

एकोनपंचाशत्तम (49) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 21-39 का हिन्दी अनुवाद

उस प्रहार से पीड़ित हो महाबाहु कर्ण धनुष छोड़कर रथ पर ही मूर्च्छित हो गया। उसका सारा शरीर शिथिल हो गया था। वह शल्य के सामने ही अचेत होकर ऐसे गिर पड़ा, मानो उसके प्राण निकल गये हों। राजा युधिष्ठिर ने अर्जुन के हित की इच्छा से कर्ण पर पुन: प्रहार नहीं किया। तब कर्ण को उस अवस्था में देखकर दुर्योधन की सारी विशाल सेना में हाहाकार मच गया और अधिकांश सैनिकों के मुख का रंग विषाद से फीका पड़ गया। राजन! राजा युधिष्ठिर का पराक्रम देखकर पाण्डव-सैनिकों में सिंहनाद, आनन्द, कलरव और किलकिल शब्दर होने लगा। तब क्रूर पराक्रमी राधापुत्र कर्ण ने थोड़ी ही देर में होश में आकर राजा युधिष्ठिर को मार डालने का विचार किया। उस अमेय आत्मबल से सम्पन्न वीर ने विजय नामक अपने विशाल सुवर्ण-जटित धनुष को खींचकर पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर को पैने बाणों से ढक दिया। तत्पश्चात क्षुरों से महात्मा युधिष्ठिर के चक्र रक्षक दो पांचाल वीर चन्द्र देव और दण्डधार को युद्धस्थल में मार डाला। धर्मराज के रथ के समीप पार्श्व भागों में वे दोनों प्रमुख पांचाल वीर चन्द्रमा के पास रहने वाले दो पुनर्वसु नामक नक्षत्रों के समान प्रकाशित हो रहे थे। युधिष्ठिर ने पुन: तीस बाणों से कर्ण को बींध डाला तथा सुषेण और सत्यसेन को भी तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। उन्होंने शल्य को नब्बे और सूतपुत्र कर्ण को तिहत्तर बाण मारे। साथ ही उनके रक्षकों को सीधे जाने वाले तीन-तीन बाणों से बेंध दिया। तब अधिरथपुत्र कर्ण ने अपने धनुष को हिलाते हुए हंसकर एक भल्ल द्वारा युधिष्ठिर के धनुष को काट दिया और उन्हें भी साठ बाणों से घायल करके सिंह के समान गर्जना की।

तदनन्तर अमर्ष में भरे हुए प्रमुख पाण्डव वीर युधिष्ठिर की रक्षा के लिये दौड़े आये और कर्ण को अपने बाणों से पीड़ित करने लगे। सात्यकि, चेकितान, युयुत्सु, पाण्डव, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, द्रौपदी के पांचों पुत्र, प्रभद्रक गण, नकुल-सहदेव, भीमसेन और शिशुपाल पुत्र एवं करुष, मत्स्य, केकय, काशि और कोसल-देशों के योद्धा-ये सभी वीर सैनिक तुरंत ही वसुषेण (कर्ण) को घायल करने लगे। पांचाल वीर जनमेजय ने रथ, हाथी और घुड़सवारों की सेना साथ लेकर सब ओर से कर्ण पर धावा किया और उसे मार डालने की इच्छा से घेरकर बाण, वाराहकर्ण, नाराच, नालीक, पैने बाण, वत्सदन्त, विपाठ, क्षुरप्र, चटकामुख तथा नाना प्रकार के भयंकर अस्त्र-शस्त्रों द्वारा चोट पहुँचाना आरम्भ किया।

पाण्डव पक्ष के प्रमुख वीरों द्वारा सब ओर से आक्रान्ता होने पर कर्ण ने ब्रह्मास्त्र प्रकट करके बाणों द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया। भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर अप्रमेय आत्मबल से सम्पन्न वैकर्तन कर्ण ने चेदिदेश के दस प्रधान वीरों को पुन: मार डाला। माननीय नरेश! कर्ण के गिरते हुए सहस्रों बाण सम्पूर्ण दिशाओं में टिड्डीदलों के समान दिखायी देते थे। उसके नाम से अंकित सुवर्णमय पंखवाले तेज बाण मनुष्यों और घोड़ों के शरीरों को विदीर्ण करके सब ओर से पृथ्वी पर गिरने लगे। समरांगण में अकेले कर्ण ने चेदिदेश के प्रधान रथियों का तथा सम्पूर्ण सृंजयों के सैकड़ों योद्धाओं का भी संहार कर डाला। कर्ण के बाणों से सारी दिशाएं ढक जाने के कारण वहाँ महान अन्धकार छा गया। उस समय शत्रु पक्ष की तथा अपने पक्ष की भी कोई वस्तु पहचानी नहीं जाती थी। शत्रुओं के लिये भयदायक उस घोर अन्धकार में महाबाहु कर्ण बहुसंख्यक राजपूतों को दग्ध करता हुआ विचरने लगा। उस समय वीर कर्ण अग्नि के समान हो रहा था। बाण भी उसके ऊंचे तक उठती हुई ज्वालाओं के समान थे, पराक्रम ही उसका ताप था और वह पाण्डव रुपी वन को दग्ध करता हुआ रणभूमि में विचर रहा था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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