महाभारत आदि पर्व अध्याय 116 श्लोक 1-18

षोडशाधिकशततम (116) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: षोडशाधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों की नामावली

जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन्! धृतराष्ट्र के पुत्रों में सबसे ज्‍येष्ठ कौन था? फि‍र उससे छोटा और उससे भी छोटा कौन था? उन सबके अलग-अलग नाम क्‍या थे? इन सब बातों का क्रमश: वर्णन कीजिये। वैशम्‍पायन जी कहते हैं- (जनमेजय! धृतराष्ट्र के पुत्रों के नाम क्रमश: ये हैं-)

1 दुर्योधन, 2 युयुत्सु, 3 दुःशासन, 4 दुःसह, 5 दु:शल, 6 जलसंध, 7 सम, 8 सह, 9 विन्‍द, 10 अनुविन्द, 11 दुर्धर्ष, 12 सुबाहु, 13 दुष्प्रधर्षण, 14 दुर्मर्षण, 15 दुर्मुख, 16 दुष्कर्ण, 17 कर्ण, 18 विविंशति, 19 विकर्ण, 20 शल, 21 सत्त्‍व, 22 सुलोचन, 23 चित्र, 24 उपचित्र, 25 चित्राक्ष, 26 चारू चित्रशरासन (चित्र-चाप), 27 दुर्मद, 28 दुर्विगाह, 29 विवित्सु, 30 विकटानन (विकट), 31 ऊर्णनाभ, 32 सुनाभ (पद्यनाभ), 33 नन्द, 34 उपनन्‍द 35 चित्रबाण (चित्रबाहु ), 36 चित्रवर्मा, 37 सुवर्मा, 38 दुर्विरोचन, 39 अयोबाहु, 40 महाबाहु चित्रांग (चित्रांगद), 41 चित्रकुण्‍डल (सुकुण्डल), 42 भीमवेग, 43 भीमबल, 44 बलाकी, 45 बलवर्धन, 46 उग्रायुध, 47 सुषेण, 48 कुण्डोदर, 49 महोदर, 50 चित्रायुध (दृढ़ायुध), 51 निषंगी, 52 पाशी,53 वृन्‍दारक, 54 दृढ़वर्मा, 55 दृढक्षत्र, 56 सोमकीर्ति, 57 अनूदर, 58 दृढ़संघ, 59 जरासंध, 60 सत्यसंध, 61 सद:सुवाक, (सहस्रवाक), 62 उग्रश्रवा, 63 उग्रसेन, 64 सेनानी (सेनापति), 65 पुष्‍पराजय, 66 अपराजित, 67 पण्डितक, 68 विशालाक्ष, 69 दुराधर (दुराधन), 70 दृढहस्थ, 71 सुहस्‍त, 72 वातवेग, 73 सुवर्चा, 74 आदित्यकेतु, 75 बहाशी, 76 नागदत्त, 77 अग्रयायी (अनुयायी), 78 कबची, 79 क्रथन, 80 दण्डी, 81 दण्डधार, 82 धर्नुग्रह, 83 उग्र, 84 भीमरथ, 85 वीरबाहु, 86 अलोलोप, 87 अभय, 88 रौद्रकर्मा, 89 दृढ़रथाश्रय (दृढरथ), 90 अनाधृष्य, 91 कुण्डभेदी, 92 विरावी, 93 विचित्र कुण्‍डलों से सुशोभित प्रमथ, 94 प्रमाथी, 95 वीर्यमान् दीर्घरोमा (दीर्घलोचन), 96 दीर्घबाहु, 97 महाबाहु व्यूढोरू, 98 कनकध्‍वज (कनकागंद), 99 कुण्‍डाशी (कुण्डज), 100 विरजा- धृतराष्ट्र के ये सौ पुत्र थे। इनके सिवा दुःशला नामक एक कन्या थी, जो सौ से अधिक थी।[1]

राजन्! इस प्रकार धृतराष्ट्र के सौ पुत्र और उन सौ के अतिरिक्त एक कन्‍या बतायी गयी। राजन्! जिस क्रम से इनके नाम लिये गये हैं, उसी क्रम से इनका जन्‍म हुआ समझो। ये सभी अतिरथी शूरवीर थे। सबने युद्ध विद्या में निपुणता प्राप्त कर ली थी। सब-के-सब वेदों के विद्वान् तथा सम्‍पूर्ण अस्त्रविद्या के मर्मज्ञ थे। जनमेजय! राजा धृतराष्ट्र ने समय पर भली-भाँति जांच पड़ताल करके अपने सभी पुत्रों का उनके योग्‍य स्त्रियों के साथ विवाह कर दिया। भरतश्रेष्ठ! महाराज धृतराष्ट्र ने विवाह के योग्‍य समय आने पर अपनी पुत्री दु:शला का राजा जयद्रथ के साथ विधिपूर्वक विवाह किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत सम्‍भव पर्व में धृतराष्ट्रपुत्रनामवर्णनविषयक एक सौ सोलहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदि पर्व के सरसठवें अध्याय में भी धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों के नाम आये है। वहाँ जो नाम दिए गए हैं, उनमें से अधिकांश नाम इस अध्याय में भी ज्यों-के-त्यों है। कुछ नामों में साधारण अंतर है, जिन्हें यहाँ कोष्ठक में दे दिया गया है। इस प्रकार यहाँ और वहाँ के नामों की एकता की गयी है। थोड़े-से नाम ऐसे भी हैं, जिनका मेल नहीं मिलता। नामों के क्रम में भी दोनों स्थलों में अंतर है। सम्भव है, उनके दो-दो नाम रहे हों और दोनों स्थलों में भिन्न-भिन्न नामों का उल्लेख हो।

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