विंशत्यधिकशततम(120) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: विंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद
बाढ़ के समय जिस ओर से जल बहकर गांवों को डूबा देने का संकट उपस्थित कर दे, उस स्थान पर जैसे लोग मजबूत बांध बांध देते हैं, उसी प्रकार जिन द्वारो से संकट आने की सम्भावना हो, उन्हें सुदृढ़ बनाने और बंद करने के लिये राजा को सतत प्रावधान रहना चाहिये। जैसे पर्वतों पर वर्षा होने से जो पानी एकत्र होकर नदी या तालाब के रुप में रहता है, उसका उपभोग करने के लिये लोग उसका आश्रय लेते हैं, उसी प्रकार राजा को सिद्ध ब्राह्मणों का आश्रय लेना चाहिये तथा जिस प्रकार धर्म का ढोंगी सिर पर जटा धारण करता हैं, उसी तरह राजा को भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने की इच्छा से उच्च लक्षणों को धारण करना चाहिये। वह सदा अपराधियों को दण्ड देने के लिये उद्यत रहे, प्रत्येक कार्य सावधानी के साथ करे, लोगों के आय-व्यय देखकर ताड़ के वृक्ष से रस निकालने की भाँति उनसे धनरुपी रस ले (अर्थात् जैसे उस रस के लिये पेड़ को काट नहीं दिया जाता, उसी प्रकार प्रजा का उच्छेद न करे) राजा अपने दल के लोगों के प्रति विशुद्ध व्यवहार करे। शत्रु के राज्य में जो खेती की फसल हो, उसे अपने दल के घोड़ों और बैलों के पैरों से कुचलवा दे। अपना पक्ष बलवान् होने पर ही शत्रुओं पर आक्रमण करे और अपने में कहाँ कैसी दुर्बलता है, इसका भलीभाँति निरीक्षण करता रहे। शत्रु के दोषों को प्रकाशित करे और उसके पक्ष के लोगों को अपने पक्ष में आने के लिये विचलित कर दे। जैसे लोग जंगल से फूल चुनते हैं, उसी प्रकार राजा बाहर से धन का संग्रह करे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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