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महाभारत: उद्योग पर्व: सप्तपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
संजय द्वारा पाण्डवों की युद्धविषयक तैयारी का वर्णन, धृतराष्ट्र का विलाप, दुर्योधन द्वारा अपनी प्रबलता का प्रतिपादन, धृतराष्ट्र का उस पर अविश्वास तथा संजय द्वारा धृष्टद्युम्न की शक्ति एवं संदेश का कथन।
- धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! तुमने वहाँ युधिष्ठिर प्रसन्नता के लिये आये हुए किन-किन राजाओं को देखा था, जो पाण्डवों के हित के लिये मेरे पुत्र की सेना के साथ युद्ध करेंगे? (1)
- संजय ने कहा- राजन! मैंने वहाँ देखा कि वृष्णि और अन्धकवंश के प्रधान पुरुष भगवान श्रीकृष्ण पधारे हुए हैं। वहाँ चेकितान और युयुधान सात्यकि भी उपस्थित हैं। (2)
- अपने को पौरुषशाली वीर मानने वाले वे दोनों विख्यात महारथी अलग-अलग एक-एक अक्षौहिणी सेना के साथ पाण्डवों की सहायता के लिये आये हैं। (3)
- पांचाल नरेश द्रुपद, धृष्टद्युम्न और सत्यजित आदि दस वीर पुत्रों के साथ शिखण्डी द्वारा सुरक्षित हो कवच आदि से सम्पूर्ण सैनिकों के शरीरों को आच्छादित करके उन सबकी एक अक्षौहिणी सेना के साथ युधिष्ठिर का मान बढा़ने के लिये वहाँ आये हुए हैं। (4-5)
- राजा विराट अपने दो पुत्रों शंख और उत्तर को साथ लिये, सूर्यदत्त और मदिराक्ष आदि वीर भ्राताओं और अन्य पुत्रों के साथ एक अक्षौहिणी सेना से घिरे हुए कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर की सहायता के लिये उपस्थित हैं। (6-7)
- जरासंधकुमार मगधनरेश सहदेव तथा चेदिराज धृष्टकेतु ये दोनों भी अलग-अलग एक-एक अक्षौहिणी सेना लेकर आये हैं। (8)
- लाल रंग की ध्वजा वाले जो पांचों भाई केकयराजकुमार हैं, वे सभी एक अक्षौहिणी सेना के साथ पाण्डवों की सेवा में उपस्थित हुए हैं। (9)
- मैंने इन सबको इतनी सेनाओं के साथ वहाँ आया हुआ देखा है। ये लोग पाण्डवों के हित के लिये दुर्योधन की सेना के साथ युद्ध करेंगे। (10)
- जो मनुष्यों, देवताओं, गन्धर्वों तथा असुरों की भी व्युह-रचना-प्राणली को जानते हैं, वे महारथी धृष्टद्युम्न पाण्डव पक्ष की सेना के अग्रभाग में सेनापति होकर रहेंगे। (11)
- राजन! शान्तनुनन्दन भीष्मजी के वध का कार्य शिखण्डी को सौंपा गया है। राजा विराट मत्स्यदेशीय योद्धाओं के साथ शिखण्डी की सहायता के लिये उसका अनुसरण करेंगे। (12)
- बलवान मद्रनरेश ज्येष्ट पाण्डव युधिष्ठिर के हिस्से में पड़े हैं, युधिष्ठिर ही उनके साथ युद्ध करेंगे। परंतु यह बंटवारा सुनकर कुछ लोग वहाँ बोल उठे थे कि ये दोनों तो हमें परस्पर समान शक्तिशाली नहीं जान पड़ते। (13)
- अपने सौ भाइयों तथा पुत्रों सहित दुर्योधन और पूर्व एवं दक्षिण दिशा के कौरव सैनिक भीमसेन का भाग नियत किये गये हैं। (14)
- वैकर्तन कर्ण, अश्वत्थामा, विकर्ण और सिंधुराज जयद्रथ ये सब अर्जुन के हिस्से में पड़े हैं। (15)
- इनके सिवा और भी अपने को शूरवीर मानने वाले जो कोई नरेश इस भूमण्डल में अजेय माने जाते हैं, उन सबको कुन्तीकुमार अर्जुन ने अपना भाग निश्चित किया है। (16)
- पांच भाई केकयराजकुमार भी महान धनुर्धर हैं। वे समरांगण में अपने विरोधी केकयदेशीय योद्धाओं को ही अपना भाग [1] मानकर युद्ध करेंगे। (17)
- मालव, शाल्व तथा त्रिगर्त देश के सैनिक और संशप्तक सेना के दो प्रमुख वीर भी उन केकयराजकुमारों के ही भाग नियत किये गये हैं। (18)
- दुर्योधन तथा दु:शासन के सभी पुत्र और राजा बृहद्बल , सुभद्रानन्दन अभिमन्यु के हिस्से में पड़े हैं। (19)
- भरतनन्दन! सुवर्णनिर्मित ध्वजाओं से युक्त महाधनुर्धर द्रौपदी पुत्र भी धृष्टद्युम्न के साथ द्रोण पर आक्रमण करेंगे। (20)
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