महाभारत विराट पर्व अध्याय 59 श्लोक 1-13

एकोनषष्टितम (59) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

Prev.png

महाभारत: विराट पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


अश्वत्थामा के साथ अर्जुन का युद्ध

वैशम्पायनजी कहते हैं - महाराज! तदनन्तर द्रोण पुत्र अश्वत्थामा ने रण भूमि में जब अर्जुन पर बड़े वेग से आक्रमण किया, तब अर्जुन ने भी प्रचण्ड वायु वेग के समान तीव्र गति से आते हुए अश्वत्थामा को रोका। उस समय जल बरसाने वाले मेघ की भाँति वह महान् शर समूह की वर्षा कर रहा था। उन दोनों में देवताओं और असुरों के समान भारी संघर्ष होने लगा। वे दोनों ( एक दूसरे पर ) बाणा समूहों की बौछार करते हुए वृत्रासुर और इन्द्र के समान जान पड़ते थे। उनके बाणों के जरल से आच्छादित होकर आकाश सब ओर से अन्धकारमय हो रहा था। उस समय न तो सूर्य प्रकाशित हो रहे थे और न वायु ही चल पाती थी। शत्रु विजयी जनमेजय! जब दोनों योद्धा एक दूसरे पर आघात करते, तब जलते हुए बाँसों के चटखने की भाँति चट चट शब्द होने लगता था। अर्जुन ने अश्वत्थामा के घोड़ों को घायल करके अल्पजीवी बना दिया। राजन्! वे मोह ग्रस्त ( मूर्च्छित ) होने के कारण किसी भी दिशा को नहीं जान पाते थे।

तदनन्तर महापराक्रमी अश्वत्थामा ने रण भूमि में विचरते हुए अर्जुन का छोटा सा छिद्र ( तनिक सी असावधानी ) देख कर क्षुर नामक बाण से उनकी प्रत्यंचा काट डाली। उसके इस अतिमानुष कर्म को देखकर सब देवता उसकी बड़ी प्रशेसा करने लगे। द्रोण, भीष्म, कर्ण और कृपाचार्य - ये सभी महारथी साधुवाद देते हुए अश्वत्थामा के उस कार्य की सराहना करने लगे। तदनन्तर द्रोण पुत्र ने अपना श्रेष्ठ धनुष खींचकर कंक पक्षी के पंख वाले बाणों द्वारा रथियों में श्रेष्ठ पार्थ की छाती में पुनः भारी आघात पहुँचाया। उस समय महाबाहु पार्थ ठहाका मारकर हँसने लगे। फिर उन्होंने गाण्डीव धनुष पर बलपूर्वक प्रत्यन्चा चढ़ा दी। तदनन्तर पसीने से अर्धचन्द्राकार धनुष की डोर को माँजकर अर्जुन अश्वत्थामा से भिड़ गये, मानो कोई उन्मत्त गजयूथाधिपति किसी दूसरे मतवाले हाथी के साथ जा भिड़ा हो। इसके बाद उस रण भूमि में भूमण्डल के इन दोनों अनुपम वीरों का ऐसा भयंकर संग्राम हुआ, जो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। समसत कौरव विस्मय विमुग्ध होकर उन दोनों वीरों की ओर देखने लगे। महा पराक्रमी अश्वत्थामा और अर्जुन परस्पर भिड़े हुए दो यूथपतियों की भाँति लड़ रहे थे। वे दोनों सुरुषसिंह वीर विषधर सर्प के समान आकार वाले जलते हुए से बाणों द्वारा एक दूसरे को चोट पहुँचाने लगे।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः