महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 34 श्लोक 1-19

चतुस्त्रिंश (34) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों की प्रशंसा

भीष्‍म कहते हैं- युधिष्ठिर! ब्राह्मणों का सदा ही भलीभाँति पूजन करना चाहिये। चन्द्रमा इनके राजा हैं। ये मनुष्‍य को सुख और दु:ख देने में समर्थ हैं। राजाओं को चाहिये कि वे उत्तम भोग, आभूषण तथा पूछकर प्रस्‍तुत किये गये दूसरे मनोवांछित पदार्थ देकर नमस्‍कार आदि के द्वारा सदा ब्राह्मणों की पूजा करें और पिता के समान उनके पालन-पोषण का ध्‍यान रखें। तभी इन ब्राह्मणों से राष्‍ट्र में शांति रह सकती है। ठीक उसी तरह, जैसे इन्‍द्र से वृष्टि प्राप्‍त होने पर समस्‍त प्राणियों को सुख-शांति मिलती है। सबको यह इच्‍छा करनी चाहिये कि राष्‍ट्र में ब्रह्मतेज से सम्‍पन्न पवित्र ब्राह्मण उत्‍पन्‍न हों तथा शत्रुओं को संताप देने वाले महारथी क्षत्रिय की उत्‍पति हो।

राजन! विशुद्ध जाति से युक्‍त तथा तीक्ष्‍ण व्रत का पालन करने वाले धर्मज्ञ ब्राह्मण को अपने घर में ठहराना चाहिये। इससे बढ़कर दूसरा कोई पुण्‍यकर्म नहीं है। ब्राह्मणों को जो हविष्‍य अर्पित किया जाता है, उसे देवता ग्रहण करते हैं, क्‍योंकि ब्राह्मण समस्‍त प्राणियों के पिता हैं। इनसे बढ़कर दूसरा कोई प्राणी नहीं है। सूर्य, चन्‍द्रमा, वायु, जल, पृथ्‍वी, आकाश और दिशा- इन सबके अधिष्‍ठाता देवता सदा ब्राह्मण के शरीर में प्रवेश करके अन्‍न भोजन करते हैं। ब्राह्मण जिसका अन्‍न नहीं खाते, उसके अन्‍न को पितर भी नहीं स्‍वीकार करते। उस ब्राह्मणद्रोही की पापात्‍मा का अन्‍न देवता भी नहीं ग्रहण करते हैं। राजन! यदि ब्राह्मण संतुष्‍ट हो जायें तो पितर तथा देवता भी सदा प्रसन्‍न रहते हैं। इसमें कोई अन्‍यथा विचार नहीं करना चाहिये। इसी प्रकार वे यजमान भी प्रसन्‍न होते हैं, जिनकी दी हुई हवि ब्राह्मणों के उपयोग में आती हैं। वे मरने के बाद नष्‍ट नहीं होते हैं, उत्तम गति को प्राप्‍त हो जाते हैं। जिससे समस्‍त प्रजा उत्‍पन्‍न होती है, वह यज्ञ आदि कर्म ब्राह्मणों से ही उत्‍पन्‍न होता है। जीव जहाँ से उत्‍पन्‍न होता है और मृत्‍यु के पश्‍चात जहाँ जाता है, उस तत्‍व को, स्‍वर्ग और नरक के मार्ग को तथा भूत, वर्तमान और भविष्‍य को ब्राह्मण ही जानता है। ब्राह्मण मनुष्‍यों में सबसे श्रेष्‍ठ हैं। भरतश्रेष्‍ठ! जो अपने धर्म को जानता है और उसका पालन करता है, वही सच्चा ब्राह्मण है।

जो लोग ब्राह्मणों का अनुसरण करते हैं, उनकी कभी पराजय नहीं होती तथा मृत्‍यु के पश्‍चात उनका पतन नहीं होता। वे अपमान को भी नहीं प्राप्‍त होते हैं। ब्राह्मण के मुख से जो वाणी निकलती है, उसे जो शिरोधार्य करते हैं, वे सम्‍पूर्ण भूतों को आत्‍मभाव से देखने वाले महात्‍मा कभी पराभव को नहीं प्राप्‍त होते हैं। अपने तेज और बल से तपते हुए क्षत्रियों के तेज और बल ब्राह्मणों के सामने आने पर ही शान्‍त होते हैं। भरतश्रेष्‍ठ! भृगुवंशी ब्राह्मणों ने तालजंघों को, अंगिरा की संतानों ने नीपवंशी राजाओं को तथा भरद्वाज ने हैहयों को और इला के पुत्रों को पराजित किया था। क्षत्रियों के पास अनेक प्रकार के विचित्र आयुध थे तो भी कृष्‍ण मृगचर्म धारण करने वाले इन ब्राह्मणों ने उन्‍हें हरा दिया। क्षत्रिय को चाहिये कि ब्राह्मणों को जलपूर्ण कलशदान करके पारलौकिक कार्य आरम्‍भ करे। संसार में जो कुछ कहा-सुना या पढ़ा जाता है, वह सब काठ में छिपी हुई आग की तरह ब्राह्मणों में ही स्थित है। भरतश्रेष्‍ठ! इस विषय में जानकार लोग भगवान श्रीकृष्‍ण और पृथ्‍वी के संवादरूप इस प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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