महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 34 श्लोक 20-31

चतुस्त्रिंश (34) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 20-31 का हिन्दी अनुवाद


श्रीकृष्‍ण ने पूछा- शुभे! तुम सम्‍पूर्ण भूतों की माता हो, इसलिये मैं तुम से एक संदेह पूछ रहा हूँ। गृहस्‍थ मनुष्‍य किस कर्म के अनुष्‍ठान से अपने पाप का नाश कर सकता है।

पृथ्‍वी ने कहा- भगवन! इसके लिये मनुष्‍य को ब्राह्मणों की ही सेवा करनी चाहिये। यही सबसे पवित्र और उत्तम कार्य है। ब्राह्मणों की सेवा करने वाले पुरुष का समस्‍त रजोगुण नष्‍ट हो जाता है। इसी से ऐश्‍वर्य, इसी से कीर्ति और इसी से उत्तम बुद्धि भी प्राप्‍त होती है। सदा सब प्रकार की समृद्धि के लिये नारद जी ने मुझसे कहा कि शत्रुओं को संताप देने वाले महारथी क्षत्रिय के उत्‍पन्‍न होने की कामना करनी चाहिये। उत्तम जाति से सम्‍पन्न, धर्मज्ञ, दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करने वाले तथा पवित्र ब्राह्मण के उत्‍पन्‍न होने की भी इच्‍छा रखनी चाहिये। छोटे-बड़े सब लोगों से जो बड़े हैं, उनसे भी ब्राह्मण बड़े माने गये हैं। ऐसे ब्राह्मण जिसकी प्रशंसा करते हैं उस मनुष्‍य की वृद्धि होती है और जो ब्राह्मणों की निन्‍दा करता है, वह शीघ्र ही पराभव को प्राप्‍त होता है। जैसे महासागर में फेंका हुआ कच्‍ची मिट्टी का ढेला तुरंत गल जाता है, उसी प्रकार ब्राह्मणों का संग प्राप्‍त होते ही सारा दुष्‍कर्म नष्‍ट हो जाता है।

माधव! देखिये, ब्राह्मणों का कैसा प्रभाव है, उन्‍होंने चन्द्रमा में कलंक लगा दिया, समुद्र का पानी खारा बना दिया तथा देवराज इन्‍द्र के शरीर में एक हज़ार भग के चिह्न उत्‍पन्‍न कर दिये और फिर उन्‍हीं के प्रभाव से वे भग नेत्र के रूप में परिणत हो गये; जिनके कारण शतक्रतु इन्‍द्र ‘सहस्राक्ष’ नाम से प्रसिद्ध हुए। मधुसुदन! जो कीर्ति, ऐश्‍वर्य और उत्तम लोकों को प्राप्‍त करना चाहता हो, वह मन को वश में रखने वाला पवित्र पुरुष ब्राह्मणों की आज्ञा के अधीन रहे।

भीष्‍म जी कहते हैं- कुरुनन्‍दन! पृथ्‍वी के ये वचन सुनकर भगवान मधुसुदन ने कहा- 'वाह-वाह, तुमने बहुत अच्‍छी बात बतायी।' ऐसा कहकर उन्‍होंने भूदेवी की भूरि-‍भूरि प्रशंसा की।

कुन्‍तीनन्‍दन! इस दृष्‍टान्‍त एवं ब्राह्मण-माहात्‍म्‍य को सुनकर तुम सदा पवित्रभाव से श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों का पूजन करते रहो। इससे तुम कल्‍याण के भागी होओगे।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्‍तर्गत दानधर्म पर्व में पृथ्‍वी और वासुदेव का संवाद विषयक चौंतीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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