षष्ठ (6) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: षष्ठ अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
तेज में सूर्य और बुद्धि में शुक्राचार्य के समान है। कांति, रूप तथा मुख की शोभा- इन तीन गुणों में वह चन्द्रमा के तुल्य है। उसका शरीर सुवर्णमय प्रस्तर समूह के समान सुशोभित होता है। अंगो का जोड़ या संधिस्थान भी सुगठित है। ऊरू, कटिप्रदेश और पिण्डलियाँ ये सुन्दर और गोल हैं। उसके दोनों चरण मनोहर हैं। अंगुलियाँ और नख भी सुन्दर हैं, मानो विधाता ने उत्तम गुणों का बारंबार स्मरण करके बड़े यत्न से उसके अंगों का निर्माण किया हो। वह समस्त शुभलक्षणों से सम्पन्न, समस्त कार्यो में कुशल और वेदविद्या का समुद्र है। परंतु शत्रुओं के लिये बलपूर्वक उसके ऊपर विजय पाना असम्भव है। वह दसों अंगों से युक्त चारों चरणों वाले धनुर्वेद को ठीक-ठीक जानता है। छहों अंगों सहित चार वेदों और इतिहास-पुराण स्वरूप पंचलवेद का भी अच्छा ज्ञाता है। महातपस्वी अश्वत्थामा को उसके पिता अयोनिज द्रोणाचार्य ने बड़े यत्न से कठोर व्रतों द्वारा तीन नेत्रों वाले भगवान शंकर की अराधना करके अयोनिजा कृपी के गर्भ से उत्पन्न किया था। उसके कर्मों की कहीं तुलना नहीं है। इस भूतल पर वह अनुपम रूप-सौन्दर्य से युक्त है। सम्पूर्ण विद्याओं का पारंगत विद्वान और गुणों का महासागर है। उस अनिन्दित अश्वत्थामा के निकट जाकर आपके पुत्र दुर्योधन ने इस प्रकार कहा- ब्रह्मन! तुम हमारे गुरुपुत्र हो और इस समय तुम्हीं हमारे सबसे बड़े सहारे हो। अतः मैं तुम्हारी आज्ञा से सेनापति का निर्वाचन करना चाहता हूँ। बताओं, अब कौन मेरा सेनापति हो, जिसे आगे रहकर हम सब लोग एक साथ हो युद्ध में पाण्डवों पर विजय प्राप्त करें? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज