महाभारत वन पर्व अध्याय 170 श्लोक 1-23

सप्तत्यधिकशततम (170) अध्‍याय: वन पर्व (निवातकवचयुद्ध पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: सप्तत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन और निवातकवचों का युद्ध

अर्जुन बोले- भारत! तदनन्तर सारे निवातकवच संगठित हो हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिये युद्धभूमि में वेगपूर्वक मेरे ऊपर टूट पड़े। उन महारथी दानवों ने मेरे रथ का मार्ग रोककर भीषण गर्जना करते हुए मुझे सब ओर से घेर लिया और मुझ पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। फिर कुछ अन्य महापराक्रमी दानव शूल और पट्टिश आदि हाथों में लिये मेरे सामने आये और मुझ पर शूल तथा भुशुण्डियों का प्रहार करने लगे। दानवों द्वारा की गयी वह शूलों की बड़ी भारी वर्षा निरन्तर मेरे रथ पर होने लगी। उसके साथ ही गदा और शक्तियों का भी प्रहार हो रहा था। कुछ दूसरे निवातकवच हाथों में तीखे अस्त्र-शस्त्र लिये उस युद्ध के मैदान में मेरी ओर दौड़े। वे प्रहार करने में कुशल थे। उनकी आकृति बड़ी भयंकर थी और देखने में वे कालरूप जान पड़ते थे। तब मैंने उनमें से एक-एक को युद्ध में गाण्डीव धनुष से छूटे हुए सीधे जाने वाले विविध प्रकार के दस-दस वेगवान् बाणों द्वारा बींध डाला। मेरे छोड़े हुए बाण पत्थर पर तेज किये हुए थे। उनकी मार खाकर सभी दानव युद्धभूमि से भाग चले। तब मातलि ने उस रथ के घोड़ों को तुरंत ही तीव्र वेग से हांका। सारथि से प्रेरित होकर वे अश्व नाना प्रकार की चालें दिखाते हुए वायु के समान वेग से चलने लगे। मातलि ने उन्हें अच्छी तरह काबू में कर रखा था। उन सब ने वहाँ दिति के पुत्रों को रौंद डाला।

अर्जुन के उस विशाल रथ में दस हजार घोड़े जुते हुए थे, तो भी मातलि ने उन्हें इस प्रकार वश में कर रखा था कि वे अल्पसंख्यक अश्वों की भाँति शान्त-भाव से विचरते थे। उन घोड़ों के पैरों की मार पड़ने से, रथ के पहिये की घर्घराहट होने से तथा मेरे बाणों की चोट खाने से सैकड़ों दैत्य मर गये। इसी प्रकार वहाँ दूसरे बहुत-से असुर हाथ में धनुष-बाण लिये प्राणरहित हो गये थे और उनके सारथि भी मारे गये थे, उस दशा में सारथिशून्य घोड़े उनके निर्जीव शरीर को खींचे लिये जाते थे। तब वे समस्त दानव सारी दिशाओं और विदिशाओं को रोककर भाँति-भाँति के अस्त्र-शस्त्रों द्वारा मुझ पर घातक प्रहार करने लगे। इससे मेरे मन में बड़ी व्यथा हुई। उस समय मैंने मातलि की अत्यन्त अद्भुत शक्ति देखी। उन्होंने वैसे वेगशाली अश्वों को बिना किसी प्रयास के ही काबू में कर लिया। राजन्! तब मैंने उस रणभूमि में अस्त्र-शस्त्रधारी सैकड़ों तथा सहस्रों असुरों को विचित्र एवं शीघ्रगामी बाणों द्वारा मार गिराया।

शत्रुदमन नरेश! इस प्रकार पूर्ण प्रयत्नपूर्वक युद्ध में विचरते हुए मेरे ऊपर इन्द्रसारथि वीरवर मातलि बड़े प्रसन्न हुए। मेरे उन घोड़ों तथा उस दिव्य रथ से कुचल जाने के कारण भी कितने ही दानव मारे गये और बहुत-से युद्ध छोड़कर भाग गये। निवातकवचों ने संग्राम में हम लोगों से होड़-सी लगा रखी थी। मैं बाणों के आघात से पीड़ित था, तो भी उन्होंने बड़ी भारी बाणवर्षा करके मेरी प्रगति को रोकने की चेष्टा की। तब मैंने अद्भुत और शीघ्रगामी बाण को ब्रह्मास्त्र से अभियंत्रित करके चलाया और उनके द्वारा शीघ्र ही सैकड़ों तथा हजारों दानवों का संहार करने लगा। तदनन्तर मेरे बाण से पीड़ित होकर वे महारथी दैत्य क्रोध से आग-बबूला हो उठे और एक साथ संगठित हो खड्ग, शूल तथा बाणों की वर्षा द्वारा मुझे घायल करने लगे। भारत! यह देख मैंने देवराज इन्द्र के परमप्रिय माधव नामक प्रचण्ड तेजस्वी अस्त्र का आश्रय लिया। तब उस अस्त्र के प्रभाव से मैंने दैत्यों के चलाये हुए सहस्रों खड्ग, त्रिशूल और तोमरों के सौ-सौ टुकड़े कर डाले। तत्पश्चात् उन दानवों के समस्त अस्त्र-शस्त्रों का उच्छेद करके मैंने रोषवश उन सबको भी दस-दस बाणों से घायल करके बदला चुकाया। उस समय मेरे गाण्डीव धनुष से बड़े-बड़े बाण उस युद्धभूमि में इस प्रकार छूटते थे, मानो वृक्ष से झुंड-के-झुंड भौंरे उड़ रहे हों। मातलि ने मेरे इस कार्य की बड़ी प्रशंसा की।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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