महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 89 श्लोक 1-15

एकोननवतितम (89) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासनपर्व: एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


भिन्न नक्षत्रों में श्राद्ध करने का फल

भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठिर! यम ने राजा शशविन्दु को भिन्न-भिन्न नक्षत्रों में किये जाने वाले जो काम्य श्राद्ध बताये हैं; उनका वर्णन मुझसे सुनो। जो मनुष्य सदा कृत्तिका ऩक्षत्र के योग में अग्नि की स्थापना करके पुत्र सहित श्राद्ध या पितरों का यजन करता है, वह रोग और चिंता से रहित हो जाता है। संतान की इच्छा वाला पुरुष रोहिणी में और तेज की कामना वाला पुरुष मृगसिरा नक्षत्र में श्राद्ध करे। आद्रा नक्षत्र में श्राद्ध का दान देने वाला मनुष्य क्रूर कर्मा होता है (इसलिये आद्रा नक्षत्र में श्राद्ध नहीं करना चाहिये)। धन की इच्छा वाले पुरुष को पुनर्वसु नक्षत्र में श्राद्ध करना चाहिये। पुष्टि की कामना वाला पुरुष पुष्य नक्षत्र में श्राद्ध करे। आश्‍लेषा में श्राद्ध करने वाला पुरुष धीर पुत्रों का जन्म देता है।

मघा में श्राद्ध एवं पिण्डदान करने वाला मनुष्य अपने कुटम्बीजनों में श्रेष्ठ होता है। पूर्वाफाल्गुनी में श्राद्ध का दान देने वाला मानव सौभाग्यशाली होता है। उत्तराफाल्गुनी में श्राद्ध करने वाला संतानवान और हस्त नक्षत्र में श्राद्ध करने वाला अभीष्ट फल का भागी होता है। चित्रा में श्राद्ध का दान करने वाले पुरुष को रूपवान पुत्र प्राप्त होते हैं। स्वाति के योग में पितरों की पूजा करने वाला वाणिज्य से जीवन-निर्वाह करता है। विशाखा में श्राद्ध करने वाला मनुष्य यदि पुत्र चाहता हो तो बहुसंख्यक पुत्रों से सम्पन्न होता है। अनुराधा में श्राद्ध करने वाला पुरुष दूसरे जन्म में राजमण्डल का शासक होता है।

कुरुकुलश्रेष्ठ! ज्येष्ठा नक्षत्र में इन्द्रियसंयमपूर्वक पिण्डदान करने वाला मनुष्य समृद्धिशाली होता है और प्रभुत्व प्राप्त करता है। मूल में श्राद्ध करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है और पूर्वाषाढ़ा में उत्तम यश की। उत्तराषाढ़ा में पितृ यज्ञ करने वाला पुरुष शोक शून्य होकर पृथ्वी पर विचरण करता है। अभिजीत नक्षत्र में श्राद्ध करने वाला वैद्य-विषयक सिद्धि पाता है। श्रवण नक्षत्र में श्राद्ध का दान करने वाला मानव मृत्यु के पश्चात सद्गति को प्राप्त होता है। धनिष्ठा में श्राद्ध करने वाला मनुष्य नियमपूर्वक राज्य का भागी होता है। वारुण नक्षत्र (शतभिषा) में श्राद्ध करने वाला पुरुष वैद्य-विषयक सिद्धि को पाता है। पूर्वभाद्रपदा में श्राद्ध करने वाला बहुत-से भेड़-बकरों का लाभ लेता है और उत्तराभाद्रपदा में श्राद्ध करने बाला सहस्रों गौएँ पाता है।

श्राद्ध में रेवती का आश्रय लेने वाला (अर्थात रेवती में श्राद्ध करने वाला) पुरुष सोने-चांदी के सिवा अन्य नाना प्रकार के धन पाता है। अश्विनी में श्राद्ध करने से घोड़ों की और भरणी में श्राद्ध का अनुष्ठान करने से उत्तम आयु की प्राप्ति होती है। इस श्राद्ध-विधि का श्रवण करके राजा शशबिन्दु ने वही किया। उन्होंने बिना किसी क्लेश के ही पृथ्वी को जीता और उसका शासनसूत्र अपने हाथ में ले लिया।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्‍तर्गत दानधर्म पर्व में श्राद्धकल्प विषयक नवासीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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