महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 82 श्लोक 1-16

द्वयशीतितम (82) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: द्वयशीतितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


मन्त्रियों की परीक्षा के विषय में तथा राजा और राजकीय मनुष्योंसे सतर्क रहने के विषय में कालकवृक्षीय मुनि का उपाख्यान

भीष्म कहते हैं - भरत नन्दन! यह राजा अथवा राजनीति की पहली वृत्ति है अब दूसरी सुनो जो कोई मनुष्य राजा के धन की वृद्धि करे उसकी राजा को सदा रक्षा करनी चाहिये।

भरतवंशी युधिष्ठिर! यदि मन्त्री राजा के खजाने से धन का अपहरण करता हो और कोई सेवक अथवा राजा के द्वारा पालित हुआ दूसरा कोई मनुष्य राजकीय कोष के नष्ट होने का समाचार राजा को बतावे, तब राजा को उसकी बात एकान्त में सुननी चाहिये और मन्त्री से उसके जीवन की रक्षा करनी चाहिये; क्योंकि चोरी करने वाले मन्त्री अपना भंडाफोड करने वाले मनुष्य को प्रायः मार डाला करते हैं। जो राजा के खजाने की रक्षा करने वाला है, उस पुरुष को राजकीय कोष लूटने वाले सब लोग एकमत होकर सताने लगते हैं।

यदि राजा के द्वारा उसकी रक्षा नहीं की जाय तो वह बेचारा बेमौत मारा जाता है। इस विषय में जानकार लोग, कालकवृक्षीय मुनि ने कोसलराज को जो उपदेश दिया था, उसी प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं। हमने सुना है कि राजा क्षेमदर्शी जब कोसल प्रदेश के राजसिंहासन पर आसीन थे, उन्हीं दिनों कालकवृक्षीय मुनि उस राज्य में पधारे थे। उन्होंने क्षेमदर्शी के सारे देश में, उस राज्य का समाचार जानने के लिये एक कौए को पिंजड़े में बाँधकर साथ ले बड़ी सावधानी के साथ बांरबार चक्कर लगाया। घुमते समय वे लोगों से कहते थे, ‘सज्जनो! तुम लोग मुझ से वायसी विद्या (कौओं की बोली समझने की कला) सीखो। मैनें सीखी है, इसलिये कौए मुझसे भूत, भविष्य तथा इस समय जो वर्तमान है, वह सब बता देते है’। यही कहते हुए वे बहुतेरे मनुष्यों के साथ उस राष्ट्र में सब ओर घुमते फिरे।

उन्होंने राजकार्य में लगे हुए समस्त कर्मचारियों का दुष्कर्म अपनी आँखों देखा। उस राष्ट्र के सारे व्यवसायों को जानकर तथा राजकीय कर्मचारियों द्वारा राजा की सम्पत्ति के अपहरण होने की सारी घटनाओं का जहाँ-तहाँ से पता लगाकर वे उत्तम व्रत का पालन करने वाले महर्षि अपने को सर्वज्ञ घोषित करते हुए उस कौए को साथ ले राजा से मिलने के लिये आये।

कोसलनरेश के निकट उपस्थित हो मुनि ने सज-धजकर बैठे हुए राजमन्त्री से कौए के कथन का हवाला देते हुए कहा-‘तुमने अमुक स्थान पर राजा के अमुक धन की चोरी की है। अमुक-अमुक व्यक्ति इस बात को जानते हैं, जो इसके साक्षी हैं। हमारा यह कौआ कहता है कि ‘तुमने राजकीय कोष का अपहरण किया है; अतः तुम अपने इस अपराध को शीघ्र स्वीकार करो’। इसी प्रकार मुनी ने राजा के खजाने से चोरी करने वाले अन्य कर्मचारियों से भी कहा -‘तुमने चोरी की है। मेरे इस कौए की कही हुई कोई भी बात कभी और कहीं भी झूठी नहीं सुनी गयी है’। कुरुश्रेष्ठ! इस प्रकार मुनि के द्वारा तिरस्कृत हुए सभी राजकर्मचारियों ने अँधेरी रात में सोये हुए मुनि के उस कौए को बाण से बींधकर मार डाला। अपने कौए को पिंजडे़ में बाण से विदीर्ण हुआ देखकर ब्राह्मण ने पूर्वाह्न में राजा क्षेमदर्शी से इस प्रकार कहा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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