महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 88 श्लोक 1-10

अष्टाशीतितम (88) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासनपर्व: अष्टाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद


श्राद्ध में पितरों के तृप्ति विषय का वर्णन

युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! पितरों के लिये दी हुई कौन-सी वस्तु अक्षय होती है? किस वस्तु के दान से पितर अधिक दिन तक और किसके दान से अनन्त काल तक तृप्त रहते हैं।

भीष्म जी ने कहा- युधिष्ठिर! श्राद्धवेत्ताओं ने श्राद्ध-कल्प में जो हविष्य नियत किये हैं, वे सब-के-सब काम्य हैं। मैं उनका तथा उनके फल का वर्णन करता हूँ, सुनो। नरेश्‍वर! तिल, ब्रीहि, जौ, उड़द, जल और फल-मूल के द्वारा श्राद्ध करने से पितरों को एक मास तक तृप्ति बनी रहती है।

मनु जी का कथन है कि जिस श्राद्ध में तिल की मात्रा अधिक रहती है, वह श्राद्ध अक्षय होता है। श्राद्ध सम्बन्धी सम्पूर्ण भोज्य पदार्थों में तिलों का प्रधान रूप से उपयोग बताया गया है। यदि श्राद्ध में गाय का दही दान किया जाये तो उससे पितरों को एक वर्ष तक तृप्ति होती बतायी गयी है। गाय के दही का जैसा फल बताया गया है, वैसा ही घृत मिश्रित खीर का भी समझना चाहिये।

युधिष्ठिर! इस विषय में पितरों द्वारा गाई हुई गाथा का भी विज्ञ पुरुष गान करते हैं। पूर्वकाल में भगवान सनत्कुमार ने मुझे यह गाथा बतायी थी। पितर कहते हैं- 'क्या हमारे कुल में कोई ऐसा पुरुष उत्पन्न होगा, जो दक्षिणायन में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मघा और त्रियोदशी तिथि का योग होने पर हमारे लिये घृत मिश्रित खीर का दान करेगा? अथवा वह नियमपूर्वक व्रत का पालन करके मघा नक्षत्र में ही हाथी के शरीर की छाया में बैठकर उसके कानरूपी व्यजन से हवा लेता हुआ अन्न-विशेष चावल का बना हुआ पायश लौहशाक से विधिपूर्वक हमारा श्राद्ध करेगा?

बहुत-से पुत्र पाने की अभिलाषा रखनी चाहिए, उनमें से यदि एक भी उस गया तीर्थ की यात्रा करे, जहाँ लोक विख्यात अक्षय वट विद्यमान है, जो श्राद्ध फल को अक्षय बनाने वाला है। पितरों की क्षय-तिथि को जल, मूल, फल उसका गूदा और अन्न आदि जो कुछ भी मधु मिश्रित करके दिया जाता है, वह उन्हें अनन्त काल तक तृप्ति देने वाला है।'


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्‍तर्गत दानधर्म पर्व में श्राद्धकल्प विषयक अट्ठासीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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