षष्ठ (6) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्री पर्व: षष्ठ अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद
नरेश्वर! उस वन में जो कुआँ कहा गया है, वह देहधारियों का शरीर है। उसमें नीचे जो विशाल नाग रहता है, वह काल ही है। वही सम्पूर्ण प्राणियों का अन्त करने वाला और देहधारियों का सर्वस्व हर लेने वाला है। कुएँ के मध्य भाग में जो लता उत्पन्न हुई बतायी गयी है, जिसको पकड़कर वह मनुष्य लटक रहा है, वह देहधारियों के जीवन की आशा ही है। राजन! जो कुएँ के मुखबन्ध के समीप छ: मुखों वाला हाथी उस वृक्ष की ओर बढ़ रहा है, उसे संवत्सर माना गया है। छ: ऋतुएँ ही उसके छ: मुख हैं और बारह महीने ही बारह पैर बताये गये हैं। जो चूहे सदा उद्यत रहकर उस वृक्ष को काटते हैं, उन चूहों को विचार शील विद्वान प्राणियों के दिन और रात बताते हैं। और जो-जो वहाँ मधुमक्खियाँ कही गयी हैं, वे सब कामनाएँ हैं। जो बहुत-सी धाराएँ मधु के झरने झरती रहती हैं, उन्हें कामरस जानना चाहिये, जहाँ सभी मानव डूब जाते हैं। विद्वान पुरुष इस प्रकार संसार चक्र की गति को जानते हैं; इसीलिये वे वैराग्य रुपी शस्त्र से इसके सारे बन्धनों को काट देते हैं। इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्तर्गत जलप्रदानिकपर्व में धृतराष्ट्र के शोक का निवारण विषयक छठा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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