पंचम (5) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्री पर्व: पंचम अध्याय: श्लोक 17-24 का हिन्दी अनुवाद
भरतश्रेष्ठ! समस्त प्राणियों को स्वादिष्ट प्रतीत होने वाले उस मधु को, जिस पर बालक आकृष्ट हो जाते हैं, वे मक्खियाँ बारंबार पीना चाहती थीं। उस समय उस मधु की अनेक धाराएँ वहाँ झर रही थीं और वह लटका हुआ पुरुष निरन्तर उस मधु धारा को पी रहा था। यद्यपि वह संकट में था तो भी उस मधु को पीते–पीते उसकी तृष्णा शान्त नहीं होती थी। वह सदा अतृप्त रहकर ही बारंबार उसे पीने की इच्छा रखता था। राजन! उसे अपने उस संकटपूर्ण जीवन से वैराग्य नहीं हुआ है। उस मनुष्य के मन में वहीं उसी दशा से जीवित रहकर मधु पीते रहने की आशा जड़ जमाये हुए है। जिस वृक्ष के सहारे वह लटका हुआ है, उसे काले और सफेद चूहे निरन्तर काट रहे हैं। पहले तो उसे वन के दुर्गम प्रदेश के भीतर ही अनेक सर्पों से भय है, दूसरा भय सीमा पर खड़ी हुई उस भयंकर स्त्री से है, तीसरा कुँए के नीचे बैठे हुए नाग से है, चौथा कुएँ के मुखबन्ध के पास खड़े हुए हाथी से है और पाँचवाँ भय चूहों के काट देने पर उस वृक्ष से गिर जाने का है। इनके सिवा, मधु के लोभ से मधुमक्खियों की ओर से जो उसको महान भय प्राप्त होने वाला है, वह छठा भय बताया गया है। इस प्रकार संसार-सागर में गिरा हुआ वह मनुष्य इतने भयों से घिरकर वहाँ निवास करता है तो भी उसे जीवन की आशा बनी हुई है और उसके मन में वैराग्य नहीं उत्पन्न होता है। इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्तर्गत जलप्रदानिक पर्व में धृतराष्ट्र के शोक का निवारण विषयक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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