एकोनषष्टितम (59) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)
महाभारत: वन पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
बृहदश्व मुनि कहते हैं- राजन्! इस प्रकार द्वापर के साथ संकेत करके कलियुग उस स्थान पर आया, जहाँ निषधराज नल रहते थे। वह प्रतिदिन राजा नल का छिद्र देखता हुआ निषध देश में दीर्घकाल तक टिका रहा। बारह वर्षों के बाद एक दिन कलि को एक छिद्र दिखायी दिया। राजा नल उस दिन लघुशंका करके आये और हाथ-मुंह धोकर आचमन करने के पश्चात् संध्योपासना करने बैठ गये; पैरों को नहीं धोया। वह छिद्र देखकर कलियुग उनके भीतर प्रविष्ट हो गया। नल में आविष्ट होकर कलियुग ने दूसरा रूप धारण करके पुष्कर के पास जाकर कहा- ‘चलो, राजा नल के साथ जूआ खेलो। मेरे साथ रहकर तुम जूए में अवश्य राजा नल को जीत लोगे। इस प्रकार महाराज नल को उनके राज्यसहित जीतकर निषध देश को अपने अधिकारों में कर लो’। कलि के ऐसा कहने पर पुष्कर राजा नल के पास गया। कलि भी सांड़ बनकर पुष्कर के साथ हो लिया। शत्रुवीरों का संहार करने वाले पुष्कर ने वीरवर नल के पास जाकर उनसे बार बार कहा- ‘हम दोनों धर्मपूर्वक जूआ खेंले।’ पुष्कर राजा नल का भाई लगता था। महामना राजा नल द्यूत के लिये पुष्कर के आह्वान को न सह सके। विदर्भ राजकुमारी दमयन्ती के देखते-देखते उसी क्षण जूआ खेलने का उपर्युक्त अवसर समझ लिया। तब कलियुग से आविष्ट होकर राजा नल हिरण्य, सुवर्ण, रथ आदि वाहन और बहुमूल्य वस्त्र दांव पर लगाते तथा हार जाते थे। सुहृदों में कोई ऐसा नहीं था, जो द्यूतक्रीड़ा के मद से उन्मत्त शत्रुदमन नल को उस समय जूआ खेलने से रोक सके। भारत! तदनन्तर समस्त पुरवासी मनुष्य मंत्रियों के साथ राजा से मिलने तथा उन आतुर नरेश को द्यूतक्रीड़ा से रोकने के लिये वहाँ आये। इसी समय सारथि ने महल में जाकर महारानी दमयन्ती से निवेदन किया-‘ देवि ये पुरवासी लोग कार्यवश राजद्वार पर खड़े हैं। आप निषधराज से निवेदन कर दें। धर्म-अर्थ का तत्त्व जानने वाले महाराज के भावी संकट को सहन न कर सकने के कारण मंत्रियों सहित सारी प्रजा द्वार पर खड़ी हैं।' यह सुनकर दुःख से दुर्बल हुई दमयन्ती ने शोक से अचेत-सी होकर आंसू बहाते हुए गद्गद वाणी से निषध नरेश से कहा- ‘महाराज! पुरवासी प्रजा राजभक्तिपूर्वक आपसे मिलने के लिये समस्त मंत्रियों के साथ द्वार पर खड़ी है। आप उन्हें दर्शन दें।’ दमयन्ती ने इन वाक्यों का बार-बार दुहराया। मनोहर नयनप्रान्त वाली विदर्भकुमारी इस प्रकार विलाप करती रह गयी, परन्तु कलियुग से आविष्ट हुए राजा नल ने उससे कोई बात तक न की। तब वे सब मंत्री और पुरवासी दुःख से आतुर और लज्जित हो यह कहते हुए अपने-अपने घर चले गये कि ‘यह राजा नल अब राज्य पर अधिक समय तक रहने वाला नहीं है।’ युधिष्ठिर! पुष्कर और नल की वह द्यूतक्रीड़ा कई महीनों तक चलती रही। पुण्यलोक महाराज नल उसमें हारते जा रहे थे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में नलद्यूत विषयक उनसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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