पंचाशदधिकशततम (150) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: पंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
राजन! भरतश्रेष्ठ! सम्पूर्ण जगत का अपराध करने वाला आपका पुत्र जब इस प्रकार सोचते-सोचते मन ही मन बहुत खिन्न हो गया, तब आचार्य द्रोण का दर्शन करने के लिये उनके पास गया। तदनन्तर वहाँ उसने कौरवों के महान संहार का वह सारा समाचार कहा और यह भी बताया कि शत्रु विजयी हो रहे हैं और महाराज धृतराष्ट्र के सभी पुत्र विपत्ति के समुद्र में डूब रहे हैं। दुर्योधन बोला- आचार्य! जिनके मस्तक पर विधिपूर्वक राज्याभिषेक किया गया था, उन राजाओं का यह महान संहार देखिये। मेरे शूरवीर पितामह भीष्म से लेकर अब तक कितने ही नरेश मारे गये। व्याधों- जैसा बर्ताव करने वाला वह शिखण्डी भीष्म को मारकर मन ही मन उत्साह से भरा हुआ है और समस्त पांचाल सैनिकों के साथ सेना के मुहाने पर खड़ा है। सव्यसाची अर्जुन ने मेरी सात अक्षौहिणी सेनाओं का संहार करके आपके दूसरे दुर्धर्ष शिष्य राजा जयद्रथ को भी मार डाला है। मुझे विजय दिलाने की इच्छा रखने वाले मेरे जो-जो उपकारी सुहृद युद्ध में प्राण देकर यमलोक में जा पहुँचे हैं, उनका ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा। जो भूमिपाल मेरे लिये इस भूमि को जीतना चाहते थे, वे स्वंय भूण्डल का ऐश्वर्य त्याग कर भूमि पर सो रहे हैं। मैं कायर हूं, अपने मित्रों का ऐसा संहार कराकर हजारों अश्वमेध यज्ञों से भी अपने को पवित्र नहीं कर सकता। हाय! मुझ लोभी तथा धर्म नाशक पापी के लिये युद्ध के द्वारा विजय चाहने वाले मेरे मित्रगण यमलोक चले गये। मुझ आचारभ्रष्ट और मित्रद्रोही के लिये राजाओं के समाज में यह पृथ्वी फट क्यों नही जाती, जिससे मैं उसी में समा जाऊ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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