पंचाशीतितम (85) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: पंचाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद
नरश्रेष्ठ! कृपाचार्य आदि आपके रथी वीरों ने अपने उत्तम बाणों द्वारा प्रहार करते हुए वहाँ पाण्डव-पक्ष के उन ग्यारह महारथी वीरों को आगे बढ़ने से रोक दिया। तत्पश्चात कुलिन्द देश के योद्धा नूतन मेंघ के समान काले, पर्वत शिखरों के समान विशालकाय और भयंकर वेगशाली हाथियों द्वारा कौरव-वीरों पर चढ़ आये। वे हिमाचल प्रदेश के मदोन्मत्त हाथी अच्छी तरह सजाये गये थे। उनकी पीठों पर सोने की जालियों से युक्त झूल पड़े हुए थे और उनके ऊपर युद्ध की अभिलाषा रखने वाले, रणकुशल कुलिन्द वीर बैठे हुए थे। उस समय रणभूमि में वे हाथी [[आकाश[[ में बिजली सहित मेंघों के समान शोभा पा रहे थे। कुलिन्दराज के पुत्र ने लोहे के बने हुए दस विशाल बाणों से सारथि और घोड़ों सहित कृपाचार्य को अत्यन्त पीड़ित कर दिया। तदनन्तर शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य के बाणों द्वारा मारा गया जाकर वह हाथी के साथ ही पृथ्वी पर गिर पड़ा। कुलिन्द राजकुमार का छोटा भाई सूर्य की किरणों के समान कान्तिमान एवं लोहे के बने हुए तोमरों द्वारा गान्धार राज के रथ की धज्जियां उड़ाकर जोर-जोर से गर्जना करने लगा। इतने में ही गान्धार राज ने उस गर्जते हुए वीर का सिर काट लिया। उन कुलिन्द वीरों के मारे जाने पर आपके महारथी बड़े प्रसन्न हुए। वे जोर-जोर से शंख बजाने लगे और हाथ में धनुष-बाण लिये शत्रुओं पर टूट पड़े। तदनन्तर कौरवों का पाण्डवों तथा सृंजयों के साथ पुनः अत्यन्त भयंकर युद्ध होने लगा। वह घमासान युद्ध बाण, खड्ग, शक्ति, ऋष्टि, गदा और फरसों की मार से मनुष्यों, घोडों और हाथियों के प्राण ले रहा था। जैसे बिजली की चमक और गर्जना से युक्त मेघ भयंकर वायु वेग से ताड़ित हो सम्पूर्ण दिशाओं से गिर जाते हैं, उसी प्रकार रथों, घोड़ो, हाथियों और पैदलों द्वारा परस्पर मारे जाकर वे युद्धरायण योद्धा धराशायी होने लगे। तदनन्तर शतानीक द्वारा सम्मानित विशाल गजराजों, अश्वों, रथों और बहुत-से पैदल समूहों को कृतवर्मा ने मार डाला। वे कृतवर्मा के बाणों से छिन्न-भिन्न हो क्षणभर में धरती पर गिर पड़े। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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