महाभारत वन पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-20

प्रथम (1) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍य पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


पाण्‍डवों का वनगमन, पुरवासियों द्वारा उनका अनुगमन और युधिष्ठिर के अनुरोध करने पर उनमें से बहुतों का लौटना तथा पाण्‍डवों का प्रमाण कोटि तीर्थ में रात्रिवास

  • ‘अंर्तयामी नारायण स्‍वरूप भगवान श्रीकृष्‍ण[1], नरस्‍वरूप नरश्रेष्‍ठ अर्जुन[2], भगवती सरस्‍वती और[3] महर्षि वेदव्‍यास को नमस्‍कार करके जय[4] का पाठ करना चाहिए।
  • जनमेजय ने पूछा- प्रियवर! मन्त्रियों सहित धृतराष्‍ट्र के दुरात्‍मा पुत्रों ने जब इस प्रकार कष्‍ट पूर्वक कुन्‍ती कुमारों को जुए में हराकर कुपित कर दिया और घोर वैर की नींव डालते हुए उन्‍हें अत्‍यन्‍त कठोर बातें सुनायी, तब मेरे पूर्व पितामह युधिष्ठिर आदि कुरुवंशियों ने क्‍या किया? (1-2)
  • तथा जो सहसा ऐश्‍वर्य से वंचित हो जाने के कारण महान दु:ख में पड़ गये थे, उन इन्‍द्र के तुल्‍य तेजस्‍वी पाण्‍डवों ने वन में किस प्रकार विचरण किया? (3)
  • उस भारी संकट में पड़े हुए पाण्‍डवों के साथ वन में कौन-कौन गये थे? वन में वे किस आचार-व्‍यवहार से रहते थे? क्‍या खाते थे और उन महात्‍माओं का निवास स्‍थान कहाँ था? (5)
  • महामुने! ब्राह्मण श्रेष्ठ! शत्रुओं का संहार करने वाले उन शूरवीर महारथियों के बारह वर्ष वन में किस प्रकार बीते? (5)
  • तपोधन! संसार की समस्‍त सुन्‍दरियों में श्रेष्‍ठ, पवित्रता एवं सदा सत्‍य बोलने वाली वह महाभागी राजकुमारी द्रौपदी, जो दु:ख भोगने के योग्‍य कदापी नहीं थी, वनवास के भयंकर कष्‍ट को कैसे सह सकी? यह सब मुझे विस्‍तार पूर्वक बतलाइये। (6-7)
  • ब्राह्मण! मैं आपके द्वारा कहे जाते हुए महान पराक्रम और तेज से सम्‍पन्‍न पाण्‍डवों के चरित्र को सुनना चाहता हूँ। इसके लिए मेरे मन में अत्‍यन्‍त कौतूहल हो रहा है। (8)
  • वैशम्‍पायनजी ने कहा- राजऩ! इस प्रकार मंत्रियों सहित दुरात्‍मा धृतराष्‍ट्र पुत्रों द्वारा जुए में पराजित करके क्रुद्ध किये हुए कुन्‍ती कुमार हस्तिनापुर से बाहर निकले। (9)
  • वर्धमानपुर की दिशा में स्थित नगर द्वार से निकलकर शस्‍त्रधारी पाण्‍डवों ने द्रौपदी के साथ उत्‍तराभिमुख होकर यात्रा आरम्‍भ की। (10)
  • इन्‍द्रसेन यदि चौदह से अधिक सेवक सारी स्त्रियों को शीघ्रगामी रथों पर बिठाकर उनके पीछे-पीछे चले। (11)
  • पाण्‍डव वन की ओर गये हैं, यह जानकर हस्‍तिनापुर के निवासी शोक से पीडित हो बिना किसी भय के भीष्‍म, विदुर, द्रोण और कृपाचार्य की बारंबार निंदा करते हुए एक-दूसरे से मिलकर इस प्रकार कहने लगे। (12 ½)
  • पुरवासी बोले- अहो! हमारा यह समस्‍त कुल, हम तथा हमारे घर-द्वार अब सुरक्षित नहीं है; क्‍योंकि यहाँ पापात्‍मा दुर्योधन सबल पुत्र शकुनि से पालित हो कर्ण और दु:शासन की सम्‍मति से इस राज्‍य का शासन करना चाहता है। (13-14)
  • जहाँ पापियों की ही सहायता से यह पापाचारी राज्‍य करना चाहता है, वहाँ हम लोगों के कुल, आचार, धर्म और अर्थ भी नहीं रह सकते, फिर सुख तो रह ही कैसे सकता है। (15)
  • दुर्योधन गुरुजनों से द्वेष रखने वाला है। उसने सदाचार और पाण्‍डवों जैसे सुहृदों को त्‍याग दिया है। वह अर्थलोलुप, अभिमानी, नीच और स्‍वभावत: ही निष्‍ठुर है। (16)
  • जहाँ दुर्योधन राजा है, वहाँ की सारी पृथ्‍वी नहीं के बराबर है, अत: यही ठीक होगा कि हम सब लोग वहीं चलें, जहाँ पाण्‍डव जा रहे हैं। (17)
  • पाण्‍डवगण दयालु, महात्‍मा, जितेन्द्रिय, शत्रुविजयी, लज्‍जाशील, यशस्‍वी, धर्मात्‍मा तथा सदाचार परायण हैं। (18)
  • वैशम्‍पायनजी कहते हैं– ऐसा कहकर वे पुरवासी पाण्‍डवों के पास गये और उन कुन्‍तीकुमारों तथा माद्री पुत्रों से मिलकर वे सबके-सब हाथ जोड़कर इस प्रकार बोले। (19)
  • ‘पाण्‍डवो! आप लागों का कल्‍याण हो। हम आप के वियोग से बहुत दु:खी हैं। आप लोग हमें छोड़कर कहाँ जा रहे हैं? आप जहाँ जायेंगे, वहीं हम भी आप के साथ चलेंगे। (20)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उनके नित्‍यसखा
  2. उनकी लीला प्रकट करने वाली
  3. उन लीलाओें का संकलन करने वाले
  4. महाभारत

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