त्रिनवतितम (93) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: त्रिनवतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
भरतश्रेष्ठ! राक्षस घटोत्कच की उस गर्जना को सुनकर राजा युधिष्ठिर ने शत्रुदमन भीमसेन से इस प्रकार कहा- 'राक्षस घटोत्कच कौरव महारथियों से निश्चय ही युद्ध कर रहा है। भैरवनाद करते हुए उस राक्षस का जैसा शब्द सुनायी देता है, उससे यहीं जान पड़ता है। मैं उस राक्षस शिरोमणि पर बहुत बड़ा भार देख रहा हूँ। उधर पितामह भीष्म भी अत्यन्त क्रोध में भरकर पांचालों को मार डालने के लिए उद्यत है। उनकी रक्षा के लिए अर्जुन शत्रुओं से युद्ध करते हैं। महाबाहो! अपने ऊपर दो कार्य उपस्थित है, ऐसा जानकर तुम जाओ और अत्यन्त संशय में पड़े हुए हिडिम्बाकुमार की रक्षा करो।' भाई की यह आज्ञा मानकर भीमसेन सिंहनाद से सम्पूर्ण नरेशों को भयभीत करते हुए बड़ी उतावली के साथ वहाँ से चल दिये। राजन्! जैसे पूर्णिमा को समुद्र बड़े वेग से बढ़ता है, उसी प्रकार भीमसेन अत्यन्त वेग से आगे बढ़े। उनके पीछे सत्यधृति, रंगदुर्मद सौचित्ति, श्रेणिमान, वसुदान, काशिराज के पुत्र अभिभू, अभिमन्यु आदि योद्धा, द्रौपदी के पाँच महारथी पुत्र, पराक्रमी क्षत्रदेव, क्षत्रधर्मा, अनूपदेश के राजा नील, जिन्हें अपने बल का पूरा भरोसा था- इन सब वीरों ने विशाल रथ सेना के साथ हिडिम्बाकुमार घटोत्कच को सब ओर से घेर लिया। सदा उन्मत्त रहने वाले, प्रहार कुशल छः हजार गजराजों के साथ आकर उपर्युक्त वीरों ने एक साथ ही राक्षसराज घटोत्कच की रक्षा की। वे महान सिंहनाद, रथ के पहियों की घरघराहट और घोड़ों की टाप पड़ने से होने वाले महान शब्द के द्वारा वसुधा को कम्पित कर रहे थे। उन सबके आने से जो कोलाइल हुआ, उसे सुनकर भीमसेन के भय से उद्विग्न हुए आपके सैनिकों का मुख उदास हो गया। महाराज! उस समय रक्षकों द्वारा सब ओर से घिरे हुए घटोत्कच को छोड़कर संग्राम में कभी पीठ न दिखाने वाले आपके तथा शत्रुपक्ष के महामनस्वी योद्धाओं में भारी युद्ध छिड़ गया। नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को छोड़ते और एक-दूसरे की ओर दौड़ते हुए उभय पक्ष के महारथी भीष्म युद्ध करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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