महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 9 श्लोक 1-36

नवम (9) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्‍डविनिर्माण पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 1-36 का हिन्दी अनुवाद

भारतवर्ष की नदियों, देशों तथा जनपदों के नाम और भूमि का महत्त्व

धृतराष्ट्र बोले- संजय! यह जो भारतवर्ष है, जिसमें यह राजाओं की विशालवाहिनी युद्ध के लिये एकत्र हुई है, जहाँ का साम्राज्य प्राप्त करने के लिये मेरा पुत्र दुर्योधन ललचाया हुआ है, जिसे पाने के लिये पाण्‍डवों के मन में भी बड़ी इच्छा है तथा जिसके प्रति मेरा मन भी बहुत आसक्त हैं, उस भारतवर्ष का तुम यथार्थरूप से वर्णन करो; क्योंकि इस कार्य के लिये मेरी दृष्टि में तुम्हीं सबसे अधिक बुद्धिमान् हो।

संजय ने कहा- राजन्! आप मेरी बात सुनिये। पाण्‍डवों को इस भारतवर्ष के साम्राज्य का लोभ नहीं है। दुर्योधन तथा सुबलपुत्र शकुनि ही उसके लिये बहुत लुभाये हुए हैं। विभिन्न जनपदों के स्वामी जो दूसरे-दूसरे क्षत्रिय हैं, वे भी इस भारतवर्ष के प्रति गृध्र-दृष्टि लगाये हुए एक-दूसरे के उत्कर्ष को सहन नहीं कर पाते हैं।

भारत! अब मैं यहाँ आपसे उस भारतवर्ष का वर्णन करूंगा, जो इन्द्रदेव और वैवस्वत मनु का प्रिय देश है। राजन्! दुर्धर्ष महाराज! वेननन्दन पृथु, महात्मा इक्ष्वाकु, ययाति, अम्बरषि, मान्धाता, नहुष, मुचुकुन्द, उशीनर-पुत्र शिबि, ॠषभ, इलानन्दन, पुरूरवा, राजा नृग, कुशिक, महात्मा गाधि, सोमक, दिलीप तथा अन्य जो महाबली क्षत्रिय नरेश हुए हैं, उन सभी को भारतवर्ष बहुत प्रिय रहा है। शत्रुदमन नरेश! मैं उसी भारतवर्ष का यथावत् वर्णन कर रहा हूँ। आप मुझसे जो कुछ पूछते या जानना चाहते हैं, वह सब बताता हूं, सुनिये। इस भारतवर्ष में महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान्, ॠक्षवान्, विन्घ्‍य और पारियात्र- ये सात कुल पर्वत कहे गये हैं।

राजन्! इनके आसपास और भी हजारों अविज्ञात पर्वत हैं, जो रत्न आदि सार वस्तुओं से यु‍क्त, विस्तृ‍त और विचित्र शिखरों से सुशोभित हैं। इनसे भिन्न और भी छोटे-छोटे अ‍परिचित पर्वत हैं, जो छोटे-छोटे प्राणियों के जीवन-निर्वाह का आश्रय बने हुए हैं। प्रभो! कुरुनन्दन! इस भारतवर्ष में आर्य, म्लेच्छ तथा संकर जाति के मनुष्‍य निवास करते हैं। वे लोग यहाँ की जिन बड़ी-बड़ी नदियों के जल पीते हैं, उनके नाम बतात हुं, सुनिये। गंगा, सिन्धु, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, बाहुदा, महानदी, शतद्रु, चन्द्रभागा, महानदी यमुना, दृषद्वती, विपाशा, विपापा, स्थूलबालु का, वेत्रवती, कृष्‍णवेणा, इरावती, वितस्ता, पयोष्णी, देविका, वेदस्मृता, वेदवत्ती, त्रिदिवा, इक्षुला, कृमि, करीषिणी, चित्रवाहा तथा चित्रसेना नदी। गोमती, धूतपापा, महानदी वन्दना, कौशिकी, त्रिदिवा, कृत्या, निचिता, लोहितारणी, रहस्या, शतकुम्भा, सरयू, चर्मण्वती, वेत्रवती, हस्तिसोमा, दिक, शरावती, पयोष्‍णी, वेणा, भीमरथी, कावेरी, चुलुका, वाणी और शतबला। नरेश्‍वर! नीवारा, अहिता, सुप्रयोगा, पवित्रा, कुण्‍डली, सिन्धु, राजनी, पुरमालिनी, पूर्वाभिरामा, वीरा (नीरा), भीमा, ओघवती, पाशाशिनी, पापहरा, महेन्द्रा, पाटलावती, करीषिणी, असिक्नी, महानदी कुशचीरा, मकरी, प्रवरा, मेना, हेमा, घृतवती, पुरावती, अनुष्णा, शैब्या, कापी, सदानीरा, अधृष्‍या और महानदी कुशधारा

सदाकान्ता, शिवा, वीरमती, वस्त्रा, सुवस्त्रा, गौरी, कम्पना, हिरण्‍वती, वरा, वीरकरा, महानदी पंचमी, रथचित्रा, ज्योतिरथा, विश्वमित्रा, कपिञ्जला, उपेन्द्रा, बहुला, कुबीरा, अम्बुवाहिनी, विनदी, पिञ्जला, वेणा, महानदी तुंगवेणा, विदिशा, कृष्‍णवेणा, ताम्रा, कपिला, खलु, सुवामा, वेदाश्वा, हरिश्रावा, महापगा, शीघ्रा, पिच्छिला, भारद्वाजी नदी, कौशिकी नदी, शोणा, बाहुदा, चन्‍द्रमा, दुर्गा, चित्रशिला, ब्रह्मवेध्या, वृहद्वती, यवक्षा, रोही तथा जाम्बूनदीसुनसा, तमसा, दासी, वसा, वराणसी, नीला, धृतवती, महानदी पर्णाशा, मानवी, वृषभा, ब्रह्ममेध्‍या, बृहद्वनि, राजन्! ये तथा और भी बहुत-सी नदियां हैं। भारत! सदा निरामया, कृष्‍णा, मन्दगा, मंदवाहिनी, ब्राह्मणी, महागौरी, दुर्गा, चित्रोत्‍पला, चित्ररथा, मञ्जुला, वाहिनी, मंदाकिनी, वैतरणी, महानदी कोषा, शुक्तिमती, अनंगा, वृषा, लोहित्‍या, करतोया, वृषका, कुमारी, ऋषिकुल्‍या, मारिषा, सरस्‍वती, मंदाकिनी, सुपुण्या, सर्वा तथा गंगा, भारत! इन नदियों के जल भारतवासी पीते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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