सप्तविंशत्यधिकशततम (127) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: सप्तविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
वहाँ मुझे तनु नाम वाले एक तपोधन ऋषि आते दिखायी दिये, जो चोर और मृगचर्म धारण किये हुए थे। उनका शरीर बहुत ऊँचा और अत्यन्त दुर्बल था। महाबाहो! उन महर्षि का शरीर दूसरे मनुष्यों से आठ गुना लंबा था। राजर्षे! मैंने उनकी-कैसी दुर्बलता कहीं भी नहीं देखी है। राजेन्द्र! उनका शरीर भी कनिष्ठि की अँगुली के समान पतला था। उनकी गर्दन, दोनों भुजाएँ, दोनों पैर और सिर के बाल भी अद्भुत दिखायी देते थे। शरीर के अनुरुप ही उनके मस्तक, कान और नेत्र भी थें। नृपश्रेष्ठ! उनकी वाणी और चेष्टा साधारण थी। मैं उन दुबले-पतले ब्राह्मण को देखकर डर गया और मन-ही-मन बहुत दुखी हो गया; फिर उनके चरणों में प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़कर उनके आगे खड़ा हो गया। नरश्रेष्ठ! उनके सामने नाम, गोत्र और पिता का परिचय देकर उन्हीं के दिये हुए आसन पर धीरे से बैठ गया। महाराज! तदनन्तर धर्मात्मओं में श्रेष्ठ तनु ऋषियों के बीच में बैठकर धर्म और अर्थ से युक्त कथा कहने लगे। उनके कथा कहते समय ही कमल के समान नेत्रोंवाले एक नरेश वेगशाली घोड़ो द्वारा अपनी सेना और अन्त:पुर के साथ वहाँ आ पहुँचे। उनका पुत्र जंगल में खो गया था। उसकी याद करके वे बहुत दुखी हो रहे थे। उनके पुत्र का नाम भूरिद्युम्न और वे उसके महायशस्वी पिता श्रीमान वीरद्युम्न थे। यहाँ उस पुत्र को अवश्य देखूँगा। यहाँ वह निश्चय ही दिखायी देगा। इसी आशा से बँधे हुए पृथ्वीपति राजा वीरद्युम्न उन दिनों उस वन में विचर कर रहे थे। ‘वह बड़ा धर्मात्मा था। अब उसका दर्शन होना अवश्य ही मेरे लिये दुर्लभ है। एक ही बेटा था, वह भी इस विशाल वन में खो गया’ इन्हीं बातों को वे बार-बार दुहराते थे। ‘मेरे लिये उसका दर्शन दुर्लभ है तो भी मेरे मन में उसके मिलने की बड़ी भारी आशा लगी हुई है। उस आशा ने मेरे सम्पूर्ण शरीर पर अधिकार कर लिया है। इसमें संदेह नहीं कि मैं इसके लिये मौत को भी स्वीकार कर लेना चाहता हूं’। राजा की यह बात सुनकर मुनियों में श्रेष्ठ भगवान तनु नीचे सिर किये ध्यान मग्न हो दो घड़ी तक चुपचाप बैठे रह गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विहायसा गच्छन्त्या मन्दाकिन्या वैहायस्या अयं वैहायस: अर्थात आकाश मार्ग से गमन करने वाली मन्दाकिनी या आकाश गंगा का वैहायसी है। वहीं के जल से भरा होने के कारण वह कुण्ड वैहायस कहलाता है। बदरिकाश्रम में गंगा का नाम अलकनन्दा है।
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