महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 89 श्लोक 1-27

एकोननवति (89) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: एकोननवति अध्याय: श्लोक 1-27 का हिन्दी अनुवाद
श्रीकृष्ण का स्वागत, धृतराष्ट्र तथा विदुर के घरों पर उनका आतिथ्य
  • वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उधर वृकस्थल में प्रात:काल उठकर भगवान श्रीकृष्ण ने सारा नित्यकर्म पूर्ण किया। फिर ब्राह्मणों की आज्ञा लेकर वे हस्तिनापुर की ओर चले। (1)
  • तब वहाँ से जाते हुए महाबाहु महाबली श्रीकृष्ण की आज्ञा ले सम्पूर्ण वृकस्थल निवासी वहाँ से लौट गए। (2)
  • दुर्योधन के सिवा धृतराष्ट्र के सभी पुत्र तथा भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य आदि यथायोग्य वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हो हस्तिनापुर की ओर आते हुए श्रीकृष्ण की अगवानी के लिए गए। (3)
  • राजन! श्रीकृष्ण का दर्शन करने के लिए बहुत से नागरिक भी नाना प्रकार की सवारियों पर बैठकर तथा अन्य कुछ लोग पैदल ही चलकर गए। (4)
  • अनायास ही महान पराक्रम दिखाने वाले भीष्म तथा द्रोणाचार्य से मार्ग में ही मिलकर धृतराष्ट्र पुत्रों से घिरे हुए भगवान श्रीकृष्ण ने नगर में प्रवेश किया। (5)
  • श्रीकृष्ण के स्वागत-सत्कार के लिए हस्तिनापुर को खूब सजाया गया था। वहाँ का राजमार्ग भी अनेक प्रकार के रत्नों से सुशोभित किया गया था। (6)
  • भरतश्रेष्ठ! उस समय भगवान वासुदेव के दर्शन की तीव्र इच्छा के कारण स्त्री, बालक अथवा वृद्ध कोई भी घर में नहीं ठहर सका। (7)
  • महाराज! जब श्रीकृष्ण नगर में प्रवेश कर रहे थे, तब राजमार्ग में भूमि पर खड़े हुए मनुष्य उनकी स्तुति करने लगे। (8)
  • भगवान श्रीकृष्ण को देखने के लिए एकत्रित हुई सुंदरी स्त्रियों से भरे हुए बड़े-बड़े महल भी उनके भार से इस भूतल पर विचलित होते-से दिखाई देते थे। (9)
  • वहाँ की प्रधान सड़क लोगों से ऐसी खचाखच भर गयी थी जिससे श्रीकृष्ण के वेगपूर्वक चलने वाले घोड़ों की गति भी अवरुद्ध हो गयी। (10)
  • शत्रुओं को क्षीण करने वाले कमलनयन श्रीकृष्ण ने राजा धृतराष्ट्र के अट्टालिकाओं से सुशोभित उज्ज्वल भवन में प्रवेश किया। (11)
  • उस राजभवन की तीन ड्यौढ़ियों को पार करके शत्रुसूदन केशव विचित्रवीर्यकुमार राजा धृतराष्ट्र के समीप गए। (12)
  • श्रीकृष्ण के आते ही महायशस्वी प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य तथा भीष्म जी के साथ ही अपने आसन से उठकर खड़े हो गए। (13)
  • कृपाचार्य, सोमदत्त तथा महाराज बाह्लिक- ये सब लोग राजा जनार्दन का सम्मान करते हुए अपने आसनों से उठ गये। (14)
  • तब वृष्णिनंदन श्रीकृष्ण ने यशस्वी राजा धृतराष्ट्र से मिलकर अपने उत्तम वचनों द्वारा भीष्म जी का आदर किया। (15)
  • यदुकुलतिलक मधुसूदन उन सबकी धर्मानुकूल पूजा करके अवस्थाक्रम के अनुसार वहाँ आए हुए समस्त राजाओं से मिले। (16)
  • तत्पश्चात जनार्दन पुत्र सहित यशस्वी द्रोणाचार्य, बाह्लिक, कृपाचार्य तथा सोमदत्त से मिले। (17)
  • वहाँ एक स्वच्छ और जगमगाता हुआ सुवर्ण का विशाल सिंहासन रखा हुआ था। धृतराष्ट्र की आज्ञा से भगवान श्रीकृष्ण उसी पर विराजमान हुए। (18)
  • तदनंतर धृतराष्ट्र के पुरोहित लोग भगवान जनार्दन के आतिथ्य सत्कार के लिए उत्तम गौ, मधुपर्क तथा जल ले आए। (19)
  • उनका आतिथ्य ग्रहण करके भगवान गोविंद हँसते हुए कौरवों के साथ बैठ गए और सबसे अपने संबंध के अनुसार यथायोग्य व्यवहार करते हुए कौरवों से घिरे हुए कुछ देर बैठे रहे। (20)
  • धृतराष्ट्र से पूजित एवं सम्मानित हो महायशस्वी शत्रुदमन श्रीकृष्ण उनकी अनुज्ञा ले उस राजभवन से बाहर निकले। (21)
  • फिर कौरव सभा में यथायोग्य सबसे मिल-जुलकर यदुवंशी श्रीकृष्ण ने विदुर जी के रमणीय गृह में पदार्पण किया। (22)
  • विदुर जी ने अपने घर में पधारे हुए दशार्हनन्दन श्रीकृष्ण के निकट जाकर समस्त मनोवांछित भोगों तथा सम्पूर्ण मांगलिक वस्तुओं द्वारा उनका पूजन किया और इस प्रकार कहा- (23)
  • 'कमलनयन! आपके दर्शन से मुझे जो प्रसन्नता हुई है, उसका आपसे क्या वर्णन किया जाये, आप तो समस्त देहधारियों के अंतर्यामी आत्मा हैं। आपसे क्या छिपा है?' (24)
  • मधुसूदन श्रीकृष्ण जब उनका आतिथ्य ग्रहण कर चुके, तब सब धर्मों के ज्ञाता विदुर जी ने उनसे पांडवों का कुशल समाचार पूछा। (25)
  • विदुर जी बुद्धिमानों में श्रेष्ठ थे। सब कुछ प्रत्यक्ष देखने वाले श्रीकृष्ण ने सदा धर्म में ही तत्पर रहने वाले, रोष-शून्य प्रेमी सुहृद बुद्धिमान विदुर से पांडवों की सारी चेष्टाएँ विस्तारपूर्वक कह सुनाईं। (26-27)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में श्रीकृष्ण का धृतराष्ट्र गृह में प्रवेशपूर्वक विदुर के गृह में पदार्पण विषयक नवासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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