महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 199 श्लोक 1-19

नवनवत्यधिकशततम (199) अध्याय: द्रोण पर्व (नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: नवनवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
अश्वथामा के द्धारा नारायणाश्त्र का प्रयोग, राजा युधिष्ठिर का, खेद, भगवान्‌ श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा, भीमसेन का वीरोचित उद्गार और उनपर उस अस्त्र का प्रबल आक्रमण


संजय कहते हैं- राजन! तदन्‍तर द्रोणकुमार अश्वत्थामा माने प्रलयकाल में काल से प्रेरित हो समस्‍त प्राणियों का संहार करने वाले यमराज के सामन शत्रुओं का विनाश आरम्‍भ किया। उसने शत्रु सैनिकों को भल्‍लों से मार-मारकर उनकी लाशों का पहाड़ जैसा ढेर लगा दिया। ध्‍वजाएँ उस पहाड़ के वृक्ष, शस्त्र उसके शिखर और मारे गये हाथी उसकी बड़ी बड़ी शिलाओं के समान थे। घोड़े मानो उस पर्वत पर निवास करने वाले किम्‍पुरुष थे। धनुष लताओं के समान फैलकर उस पर छाये हुए थे। मांस भक्षी जीव जन्‍तु मानो वहाँ चहचहाने वाले पक्षी थे और भूतों के समुदाय उस पर विहार करने वाले यक्ष जान पड़ते थे। नरश्रेष्ठ अश्वथामा ने फिर बड़े वेग से गर्जना करके आपके पुत्र को पुनः अपनी प्रतिज्ञा सुनायी।


'धर्म का चोला पहने हुए कुन्‍तीपुत्र युधिष्ठिर ने युद्ध परायण आचार्य से ‘शस्त्र त्‍याग दीजिये’ ऐसा कहा था और शस्त्र रखवा दिया; इसलिये मैं उनके देखते देखते उनकी सारी सेना को खदेड़ दूँगा और समस्‍त सैनिकों को भगाकर उस नीच पान्‍चालपुत्र को मार डालूँगा। यदि ये रणभूमि में मेरे साथ युद्ध करेंगे तो मैं इन सबका वध कर डालूँगा, यह मैं तुमसे सच्‍ची प्रतिज्ञा करके कहता हूँ। अतः तुम अपनी सेना को लौटाओ’। यह सुनकर आपके पुत्र ने महान सिंहनाद के द्वारा अपनी सेना का भारी भय दूर करके फिर उसे लौटाया। राजन! फिर मेरे भरे हुए दो महासागरों के समान कौरव पाण्डव सेनाओं में घोर संग्राम आरम्‍भ हो गया। द्रोणपुत्र से आश्‍वासन पाकर कौरव सैनिक स्थिर हो युद्ध के लिये रोष और उत्‍साह में भर गये थे उधर द्रोणाचार्य के मारे जाने से पाण्‍डव और पान्‍चाल वीर पहले से ही उद्धत हो रहे थे। प्रजानाथ! वे अत्‍यन्‍त हर्षोत्‍फुल्‍ल होकर अपनी ही विजय देख रहे थेा रोषावेष में भरे हुए उन सैनिकों का महान वेग प्रकट हुआ।


राजेन्‍द्र! जैसे एक पहाड़ दूसरे पहाड़ से टकरा जाय तथा एक दूसरे समुद्र से टक्‍कर ले, वही अवस्‍था कौरव पाण्‍डव योद्धाओं की भी थी। तदन्‍तर हर्षमग्न हुए कौरव पाण्‍डव सैनिक सहस्रों शंख और हजारों रणभेरियाँ बजाने लगे। जैसे मथे जाते हुए समुद्र का महान शब्‍द सब और गूँज उठा था, उसी प्रकार आपकी सेना का महान कोलाहल भी अदभुत एवं अनुपम था। तत्पश्चात द्रोणपुत्र अश्वथामा ने पाण्‍डवों और पान्‍चालों की सेना को लक्ष्‍य करके नारायणास्त्र प्रकट किया। उससे आकाश में हजारों बाण प्रकट हुए उन सबके अग्रभाग प्रज्‍वलित हो र‍हे थे वे सभी बाण प्रज्‍वलित मुख वाले सर्पों के समान आकर पाण्‍डव सैनिकों का विनाश करने को उद्यत थे। राजन! जैसे दो ही घड़ी में सूर्य की किरणें सारे संसार में फैल जाती हैं, उसी प्रकार उस महासमर में बाण सम्‍पूर्ण दिशाओं, आकाश और समस्‍त सेनाओं में छा गये। महाराज! इसी प्रकार यहाँ निर्मल आकाश में प्रकाशित होने वाले ज्‍योतिर्मय ग्रह नक्षत्रों के समान काले लोहे के जलते हुए गोले भी प्रकट हो होकर गिरने लगे। फिर चार या दो पहियों वाली शतघ्नियाँ (तोपें), बहुत सी गदाएँ तथा जिनके प्रान्‍त भाग में छुरे लगे हुए थे, ऐसे सूर्यमण्‍डल के समान कितने ही चक्र प्रकट होने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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