महाभारत शल्य पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-19

प्रथम (1) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


संजय के मुख से शल्य और दुर्योधन के वध का वृतांत सुनकर राजा धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना और सचेत होने पर उन्हें विदुर का आश्वासन देना


अन्तर्यामी नारायणस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण, (उनके नित्य सखा) नरस्वरूप नरश्रेष्ठ अर्जुन, (उनकी लीला प्रकट करने वाली) भगवती सरस्वती और (उन लीलाओं का संकलन करने वाले) महर्षि वेदव्यास को नमस्कार करके जय (महाभारत) का पाठ करना चाहिये।

जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन! जब इस प्रकार समरांगण में सव्यसाची अर्जुन ने कर्ण को मार गिराया, तब थोडे़ से बचे हुए कौरवसैनिकों ने क्या किया? पाण्डवों का बल बढ़ता देखकर कुरुवंशी राजा दुर्योधन ने उनके साथ कौन-सा समयोचित बर्ताव करने का निश्चय किया? द्विजश्रेष्ठ! मैं यह सब सुनना चाहता हूँ मुझे अपने पूर्वजों का महान चरित्र सुनते-सुनते तृप्ति नहीं हो रही है, अतः आप इसका वर्णन कीजिए।

वैशम्पायन जी ने कहा- राजन! कर्ण के मारे जाने पर धृतराष्ट्रपुत्र राजा दुर्योधन शोक के समुद्र में डूब गया और सब ओर से निराश हो गया। हा कर्ण! हा कर्ण! ऐसा कहकर बारंबार शोकग्रस्त हो मरने से बचे हुए नरेशों के साथ वह बड़ी कठिनाई से अपने शिविर में आया। राजाओं ने शास्त्रनिश्चित युक्तियों द्वारा उसे बहुत समझाया बुझाया तो भी सूतपुत्र के वध का स्मरण करके उसे शांति नहीं मिली। उस राजा दुर्योधन ने देव और भवितव्यता को प्रबल मानकर संग्राम जारी रखने का ही दृढ़ करके पुनः युद्ध के लिये प्रस्थान किया। नृपश्रेष्ठ राजा दुर्योधन शल्य को विधिपूर्वक सेनापति बनाकर मारने से बचे हुए राजाओं के साथ युद्ध के लिये निकला। भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर कौरव-पाण्डव सेनाओं में घोर युद्ध हुआ, जो देवासुर-संग्राम के समान भयंकर था। महाराज! तत्पश्चात सेनासहित शल्य युद्ध में बड़ा भारी संहार मचाकर मध्याह्नकाल में धर्मराज युधिष्ठिर हाथ से मारे गये। तदनन्तर राजा दुर्योधन अपने भाईयों के मारे जाने पर समरांगण से दूर जाकर शत्रु के भय से भयंकर तालाब में घुस गया। इसके बाद उसी दिन अपराह्नकाल में दुर्योधन पर घेरा डालकर उसे युद्ध के लिये तालाब से बुलाकर भीमसेन ने मार गिराया।

राजेन्द्र! उस महाधनुर्धर दुर्योधन के मारे जाने पर मरने से बचे हुए तीन रथी- कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा ने रात में सोते समय पांचालों और सोमकों को रोषपूर्वक मार डाला। तत्पश्चात पूर्वाह्नकाल में दुःख और शोक में डूबे हुए संजय ने शिविर से आकर दीनभाव से हस्तिनापुर में प्रवेश किया। पुरी में प्रवेश करके दोनों बाँहे ऊपर उठाकर दुःख मग्न हो काँपते हुए संजय राजभवन के भीतर गये। और रोते हुए दुखी होकर बोले- हा नरव्याघ्र नरेश! हा राजन! बड़े शोक की बात है! महामनस्वी कुरुराज के निधन से हम सर्वथा नष्टप्राय हो गये! इस जगत में भाग्य ही बलवान है। पुरुषार्थ तो निरर्थक है, क्योंकि आपके सभी पुत्र इन्द्र के तुल्य बलवान होने पर भी पाण्डवों के हाथ से मारे गये। राजन! नृपश्रेष्ठ! हस्तिनापुर के सभी लोग संजय को सर्वथा महान क्लेश से युक्त देखकर अत्यन्त उद्विग्न हो हा राजन! ऐसा कहते हुए फूट-फूटकर रोने लगे। नरव्याघ्र! वहाँ चारों ओर बच्चों से लेकर बुढ़ों तक सब लोग राजा को मारा गया सुन आर्तनाद करने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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