महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 20 श्लोक 1-17

विंश (20) अध्याय: स्‍त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)

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महाभारत: स्त्री पर्व: विंश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


गान्धारी द्वारा श्रीकृष्ण के प्रति उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के शोक एवं विलाप का वर्णन


गान्धारी बोलीं- दशार्हनन्दन केशव! जिसे बल और शौर्य में अपने पिता से तथा तुमसे भी डेढ़ गुना बताया जाता था जो प्रचण्ड सिंह के समान अभिमान में भरा रहता था जिसने अकेले ही मेरे पुत्र के दुर्भेघ व्यूह को तोड़ डाला था, वही अभिमन्यु दूसरों की मृत्यु बनकर स्वंय भी मृत्यु के अधीन हो गया। श्रीकृष्ण। मैं देख रही हूँ कि मारे जाने पर भी अमित तेजस्वी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की कांति अभी अभी बुझ नहीं पा रही है। यह राजा विराट की पुत्री और गाण्डीवधारी अर्जुन की पुत्रवधु सती साध्वी उत्तरा अपने बालक पति वीर अभिमन्यु को मरा देख आर्त होकर शोक प्रकट कर रही है। श्रीकृष्ण! यह विराट की पुत्री और अभिमन्यु की पत्नि उत्तरा अपने पति के निकट जाकर उसके शरीर पर हाथ फेर रही है। शुभद्रा कुमार का मुख प्रफुल्ल कमल के समान शोभा पाता है। उसकी ग्रीवा शंख के समान गोल है, कमनीय रूप सौन्दर्य से सुशोभित माननीय एवं मनस्विनी उत्तरा पति के मुखारविन्द को सूँघकर उसे गले से लगा रही है। पहले भी यह इसी प्रकार मधु के मद से अचेत हो सलज्ज भाव से उसका आलिंगन करती रही होगी। श्रीकृष्ण! अभिमन्यु का सुवर्ण भूषित कवच खून से रँग गया है। बालिका उत्तरा उस कवच को खोलकर पति के शरीर को देख रही है। उसे देखती हुई वह वाला तुमसे पुकार कर कहती है, कमलनयन! आपके भानजे के नेत्र भी आपके ही समान थे। यह रणभूमि में मार गिराये गये हैं। अनघ! जो बल, वीर्य, तेज और रूप में सवर्था आपके समान थे, वे ही सुभद्रा कुमार शत्रुओं द्वारा मारे जाकर पृथ्वी पर सो रहे हैं।

(श्रीकृष्ण! अब उत्तरा अपने पति को संबोधित करके कहती है) प्रियतम! आपका शरीर तो अत्यन्त सुकुमार है। आप रंकुमृग के चर्म से बने हुए सुकोमल बिछौने पर सोया करते थे। क्या आज इस तरह पृथ्वी पर पड़े रहने से आपके शरीर को कष्ट नहीं होता है? जो हाथी की सूँड के समान बड़ी है, निरंतर प्रत्यंचा खींचने के कारण रगड़ से जिनकी त्वचा कठोर हो गयी है तथा जो सोने के बाजूबन्द धारण करते हैं उन विशाल भुजाओं को फैलाकर आप सो रहे हैं। निश्चय ही बहुत परिश्रम करके मानो थक जाने कारण आप सुख की नींद ले रहे हो। मैं इस तरह आर्त होकर विलाप करती हूँ किंतु आप मुझसे बोलते तक नहीं हैं। मैंने कोई अपराध किया हो, ऐसा तो मुझे स्मरण नहीं है, फिर क्या कारण कि आप मुझसे नहीं बोलते हैं। पहले तो आप मुझे दूर से भी देख लेने पर बोले बिना नहीं रहते थे। आर्य! आप माता सुभद्रा को, इन देवताओं के समान ताऊ, पिता और चाचाओं तथा मुझ दुखातुरा पत्नि को छोड़कर कहाँ जायँगे?

जनार्दन! देखो, अभिमन्यु के सिर को गोदी में रखकर उत्तरा उसके खून से सने हुए केषों को हाथ से उठा-उठा कर सुलझाती है और मानो वह जी रहा हो, इस प्रकार उससे पूछती है। प्राणनाथ! आप वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण के भानजे और गाण्डीवधारी अर्जुन के पुत्र थे। रणभूमि के मध्य भाग में खड़े हुए आपको इन महारथियों ने कैसे मार डाला?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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