महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 84 श्लोक 1-21

चतुरशीतितम (84) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध, कर्ण का भय और शल्य का समझाना तथा नकुल और वृषसेन का युद्ध


संजय कहते हैं- राजन्! दुःशासन के मारे जाने पर युद्ध से कभी पीठ न दिखाने वाले और महान् क्रोधरूपी विष से भरे हुए आपके दस महारथी महापराक्रमी वीर पुत्रों ने आकर भीमसेन को अपने बाणों द्वारा आच्छादित कर दिया। निषंगी, कवची, पाशी, दण्डभार, धनुग्रह (धनुग्रह), अलोलुप, शल, सन्ध (सत्यसन्ध), वातवेग और सुवर्चा (सुवर्चस्) - ये एक साथ आकर भाई की मृत्यु से दुःखी हो महाबाहु भीमसेन को अपने बाणों द्वारा रोकने लगे। उन महारथियों के चलाये हुए बाणों द्वारा चारों ओर से रोके जाने पर भीमसेन की आँखे क्रोध से लाल हो गयीं और वे कुपित हुए काल के समान प्रतीत होने लगे। कुन्तीकुमार भीम ने सोने के पंखवाले महान् वेगशाली दस भल्लों द्वारा सुवर्णमय अंगदों से विभूषित उन दसों भरतवंशी राजकुमारों को यमलोक पहुँचा दिया। उन वीरों के मारे जाने पर पाण्डुपुत्र भीमसेन के भय से पीड़ित हो आपकी सारी सेना सूतपुत्र के देखते-देखते भाग चली।

महाराज! जैसे प्रजावर्ग पर यमराज का बल काम करता है, उसी प्रकार भीमसेन का वह पराक्रम देखकर कर्ण के मन में महान भय समा गया। युद्ध में शोभा पाने वाले शल्य कर्ण की आकृति देखकर ही उसके मन का भाव समझ गये; अतः शत्रुदमन कर्ण से यह समयोचित वचन बोले- राधानन्दन! तुम खेद न करो तुम्हें यह शोभा नहीं देता है। ये राजालोग भीमसेन भय से पीड़ित हो भागे जा रहे हैं। अपने भाईयों की मृत्यु से दुःखित हो राजा दुर्योधन भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है। महामना भीमसेन जब दुःशासन का रक्त पी रहे थे, तभी से ये कृपाचार्य आदि वीर तथा मरने से बचे हुए सब भाई कौरव विपन्न और शोकाकुलचित्त होकर दुर्योधन को सब ओर से घेरकर उसके पास खडे़ हैं। 'अर्जुन आदि पांडव वीर अपना लक्ष्य सिद्ध कर चुके हैं और अब युद्ध के लिये तुम्हारे ही सामने उपस्थित हो रहे हैं। पुरुषसिंह! ऐसी अवस्था में तुम पुरुषार्थ का भरोसा कर के क्षत्रिय-धर्म को सामने रखते हुए अर्जुन पर चढ़ाई करो। महाबाहो! धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन सारा भार तुम्हीं पर रख छोड़ा है। तुम अपने बल और शक्ति के अनुसार उस भार का वहन करो। यदि विजय हुई तो तुम्हारी बहुत बड़ी कीर्ति फैलेगी और पराजय होने पर अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति निश्चित है। राधानन्दन! तुम्हारे मोहग्रस्त हो जाने के कारण तुम्हारा पुत्र वृषसेन अत्यन्त कुपित हो पाण्डवों पर धावा कर रहा है। अमिततेजस्वी शल्य की यह बात सुनकर कर्ण ने अपने हृदय में युद्ध के लिये आवश्यक भाव (उत्साह, अमर्ष आदि) को दृढ़ किया।

यह देख प्रमुख वीर नकुल ने अपने शत्रु कर्ण पुत्र वृषसेन को, जो समरांगण में बड़े हर्ष के साथ युद्ध कर रहा था, बाणों द्वारा पीड़ित करते हुए उस पर रोषपूर्वक चढ़ाई कर दी। ठीक उसी तरह, जैसे पूर्वकाल में इन्द्र ने जम्भ नामक दैत्य पर आक्रमण किया था। तदनन्तर वीर नकुल ने एक क्षुर द्वारा कर्णपुत्र के उस ध्वज को काट डाला, जिसे स्फटिकमणि से जटित विचित्र कंचुक (चोला) पहनाया गया था। साथ ही एक भल्ल द्वारा उसके सुवर्णजटित विचित्र धनुष को भी खण्डित कर दिया। तब कर्णपुत्र वृषसेन ने तुरंत ही दूसरा धनुष हाथ में लेकर पाण्डु कुमार नकुल को बींध डाला। कर्ण का पुत्र अस्त्र-विद्या का ज्ञाता था, इसलिये वह नकुल पर दिव्यास्त्रों की वर्षा करने लगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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