महाभारत विराट पर्व अध्याय 61 श्लोक 1-13

एकषष्टितम (61) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: एकषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन का उत्तर कुमार को आश्वासन तथा अर्जुन से दुःशासन आदि की पराजय

वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! इस प्रकार वैकर्तन कर्ण को जीतकर अर्जुन ने विराट कुमार उत्तर से कहा - ‘सारथे! तुम मुझे इस सेना की ओर ले चलो, जिसकी ध्वजा पर सुवर्णमय ताड़ वृक्ष का चिह्न है। ‘उस रथ पर हम सबके पितामह शन्तनु नन्दन भीष्मजी बैठे हैं। वे मेरे साथ युद्ध की इच्छा रचाकर खड़े हैं। उनका दर्शन देवताओं के समान है’। यह सुनकर उत्तर ने, जो बाणों से अत्यन्त घायल हो चुका था, रथों, हाथियों और घोड़ों से भरी हुई विशाल सेना की ओर देखकर कहा - ‘वीर! अब मैं युद्ध भूमि में आपके उत्तम घोड़ों को नहीं सम्हाल सकूँगा। मेरे प्राण बड़ी व्यथा में हैं और मन व्याकुल सा हो रहा है। ‘आपके तथा कौरव वीरों के द्वारा प्रयुक्त होने वाले दिव्यास्त्रों का प्रभाव यह हैं कि मुझे दसों दिशाएँ भागती सी प्रतीत होती हैं। ‘मैं चर्बी, रक्त और मेद की गन्ध से मूर्च्छित हो रहा हूँ। आज आपके देखते - देखते मेरा मन दुविधा में पड़ गया है।

‘युद्ध में इतने शूरवीरों का जमघट मैंने पहले कभी नहीं देखा था। वीरवर! गदाओं के भारी आघात, शंखों के भयंकर शब्द, शूरवीरों के सिंहनाद, हाथियों के चिग्घाड़ तथा वज्र की गड़गड़ाहट के समान गाण्डीव धनुष की भारी टंकार ध्वनि से मेरा चित्त मोहित हो गया है। मेरी श्रवण्ध शक्ति और स्मरण शक्ति भी जवाब दे चुकी है। ‘रण भूमि में आप निरन्तर गाण्डीव धनुष को खींचते और टंकारते रहते हैं, जिससे यह अलातचक्र के समान गोल प्रतीत होता है। उसे देखकर मेरी आँखें चैंधियाँ रही हैं तथा हृदय फटा सा जा रहा है। ‘इस संग्राम में कुपित हुए पिनाकपणि भगवान् रुद्र की भाँति आपका शरीर भयानक जान पड़ता है और लगातार धनुष बाण चलाने के व्यायाम में संलग्न रहने वाले आपकी भुजाओं को देखकर भी मुझे भय लगता है। ‘आप कब उत्तम बाणों को हाथों में लेते, कब धनुष पर रखते और कब उन्हें छोड़ते हैं, यह सब मैं नहीं देख पाता और देखने पर भी मुझे चेत नहीं रहता। इस समय मेरे प्राण अकुला रहे हैं। यह पृथ्वी काँपती सी जान पड़ती है। इस समय मुझमें इतनी शक्ति नहीं है कि घोड़ों की रास सँभाल सकूँ और चाबुक लेकर इन्हें हाँकूँ’।

अर्जुन बोले - नरश्रेष्ठ! डरो मत। अपने आपको सँभालो तुमने भी युद्ध के मुहाने पर बड़े अद्भुत पराक्रम दिखाये हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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