महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 32 श्लोक 1-19

द्वात्रिंश (32) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: द्वात्रिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


कौरव-पाण्‍डव सेनाओं का घमासान युद्ध, भीमसेन का कौरव महारथियो के साथ संग्राम, भयंकर संहार,पाण्‍डवों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण, अर्जुन और कर्ण का युद्ध, कर्ण के भाइयों का वध तथा कर्ण और सात्यकि का संग्राम

  • संजय कहते हैं– महाराज! अपनी सेना का वह विनाश भीमसेन से नहीं सहा गया। उन्‍होंने गुरुदेव को साठ और कर्ण को दस बाणों से घायल कर दिया। (1)
  • तब द्रोणाचार्य ने सीधे जाने वाले, तीखी धार से युक्‍त पैने बाणों द्वारा शीघ्रतापूर्वक भीमसेन के मर्मस्‍थानों पर आघात किया। वे भीमसेन के प्राणों का अन्‍त कर देना चाहते थे। (2)
  • इस आघात-प्रतिघात को निरन्‍तर जारी रखने की इच्‍छा से द्रोणाचार्य ने भीमसेन को छब्‍बीस, कर्ण ने बारह और अश्वत्‍थामा ने सात बाण मारे। (3)
  • तदनन्‍तर राजा दुर्योधन ने उनके ऊपर छ: बाणों द्वारा प्रहार किया। फिर महाबली भीमसेन ने उन सबको अपने बाणों द्वारा घायल कर दिया। (4)
  • उन्‍होंने द्रोण को पचास, कर्ण को दस, दुर्योधन को बारह और अश्वत्‍थामा को आठ बाण मारे। (5)
  • तत्‍पश्चात भयंकर गर्जना करते हुए भीम ने रणक्षेत्र में उन सबका सामना किया। भीमसेन मृत्यु के तुल्‍य अवस्‍था में पहुँच गये थे और अपने प्राणों का परित्‍याग करना चाहते थे। उसी समय अजातशत्रु युधिष्ठिर ने अपने योद्धाओं को यह कहकर आगे बढ़ने की आज्ञा दी कि 'तुम सब लोग भीमसेन की रक्षा करो।' यह सुनकर वे अमित तेजस्‍वी वीर भीमसेन के समीप चले। (6-7)
  • सात्‍यकि आदि महारथी तथा पाण्‍डुकुमार माद्रीपुत्र नकुल-सहदेव– ये सभी पुरुषश्रेष्‍ठ वीर परस्‍पर मिलकर एक साथ अत्‍यन्‍त क्रोध में भरकर बड़े-बड़े धनुर्धरों से सुरक्षित हो द्रोणाचार्य की सेना को विदीर्ण कर डालने की इच्‍छा से उस पर टूट पड़े। वे भीम आदि सभी महारथी अत्‍यन्‍त पराक्रमी थे। (8-9)
  • उस समय रथियों में श्रेष्‍ठ आचार्य द्रोण ने घबराहट छोड़कर उन अत्‍यन्‍त बलवान समरभूमि में युद्ध करने वाले महारथी वीरों को रोक दिया। (10)
  • परंतु पाण्‍डववीर मौत के भय को बाहर छोड़कर आपके सैनिकों पर चढ़ आये। घुड़सवार घुड़सवारों को तथा रथारोही योद्धा रथियों को मारने लगे। (11)
  • उस युद्ध में शक्ति और खड्गों के घातक प्रहार हो रहे थे। फरसों से मार-काट हो रही थी। तलवार खींचकर उसके द्वारा ऐसा भयंकर युद्ध हो रहा था कि उसका कटु परिणाम प्रत्‍यक्ष सामने आ रहा था। (12)
  • हाथियों के संघर्ष में अत्‍यन्‍त दारुण संग्राम होने लगा। कोई हाथी से गिरता था तो कोई घोड़े से ही औंधे सिर धराशायी हो रहा था। (13)
  • आर्य! उस युद्ध में कितने मनुष्‍य बाणों से विदीर्ण होकर रथ से नीचे गिर जाते थे। कितने ही योद्धा कवचशून्‍य हो धरती पर गिर पड़ते थे और सहसा कोई हाथी उनकी छाती पर पैर रखकर उनके मस्‍तक को भी कुचल देता था। (14)
  • दूसरे हाथियों ने भी दूसरे बहुत-से गिरे हुए मनुष्‍यों को अपने पैरों से रौंद डाला। अपने दाँतों से धरती पर आघात करके बहुत-से रथियों को चीर डाला। (15)
  • कितने ही गजराज अपने दाँतों में लगी हुई मनुष्‍यों की आँतें लिये समर-भूमि में सैकड़ों योद्धाओं को कुचलते हुए चक्‍कर लगा रहे थे। (16)
  • काले रंग के लोहमय कवच धारण करके रणभूमि में गिरे हुए कितने ही मनुष्‍यों, रथों, घोड़ों और हाथियों को बड़े-बड़े गजराजों ने मोटे नरकुलों के समान रौंद डाला। (17)
  • बड़े-बड़े राजा कालसंयोग से अत्‍यन्‍त दु:खदायिनी तथा गीध की पाँखरूपी बिछौनों से युक्‍त शय्याओं पर लज्‍जापूर्वक सो रहे थे। (18)
  • वहाँ पिता रथ के द्वारा युद्ध के मैदान में आकर पुत्र का ही वध कर डालता था तो पुत्र भी मोहवश पिता के प्राण ले रहा था। इस प्रकार वहाँ मर्यादाशून्‍य युद्ध हो रहा था। (19)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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