महाभारत विराट पर्व अध्याय 65 श्लोक 1-10

पंचषष्टितम (65) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: पंचषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन और दुर्योधन का युद्ध, विकर्ण आदि योद्धाओं सहित दुर्योधन का युद्ध के मैदान से भागना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! जब भीष्म जी युद्ध का मुहाना छोड़कर दूर हट गये, तब धृतराष्ट्र के पुत्र महामना दुर्योधन अपने रथ की पताका फहराकर हाथ में धनुष ले सिंहनाद करता हुआ अर्जुन पर चढ़ आया। उस समय भयंकर धनुष धारण करने वाले प्रचण्ड पराक्रमी धनुजय शत्रुसेना में विचर रहे थे। दुर्योधन ने धनुष को कान तक खींचकर छोड़े हुए भल्ल नामक बाण से उनके ललाट में गहरी चोट पहुँचायी। वह बाण अर्जुन के ललाट में धुस गया। राजन! प्रशंसनीय पराक्रम वाले अर्जुन सुनहरी धर वाले उस धँसे हुए बाण के द्वारा उसी प्रकार सुशोभित हुए, जैसे एक सुन्दर शिखर वाला पर्वत अपने ऊपर उगे हुए एक ही बाँस के प्रड़ से शोभा पा रहा हो। दुर्योधन के उस बाण से अर्जुन का ललाट विदीर्ण हो गया था और उससे गरम-गरम रक्त की अविच्छिन्न धारा बहने लगी। जाम्बूनद सुवर्ण की पाँख वाला वह विचित्र बाण पार्थ का ललाट छेदकर बड़ी शोभा पा रा था। तदनन्तर उग्र तेजस्वी अद्वितीय वीर अर्जुन ने दुर्योधन पर और दुर्योधन ने अर्जुन पर आक्रमण किया।

अजमीढ़ वंश के वे दोनों प्रमुख वीर पुरुष एक समान पराक्रमी थे। उन्होंने संग्राम में एक दूसरे पर बड़े वेग से धावा किया। उसी समय एक पर्वताकार गजराज पर, जिसके मस्तक से मद टपक रहा था, चढ़कर विकर्ण पुनः विजयशाली कुन्ती नन्दन अर्जुन पर चढ़ आया। उसके साथ चार रथारोही योद्धा भी थे, जो हाथी के चारों पैरों की रक्षा कर रहे थे। गजराज को तीव्र गति से अपनी ओर आते देख धनंजय ने धनुष को कान तब खींचकर चलाये हुए लोहे के अत्यन्त वेगशाली बाण द्वारा उसके कुम्भ स्थल को बींध डाला। पार्थ का छोड़ा हुआ वह गीध पक्षी के परों वाला बाण उस हाथी के मस्तक में पंख सहित घुस गया; मानो इन्द्र का चलाया हुआ वज्र किसी प्रकाश पूर्ण गिरिराज को विदीर्ण करके उसके भीतर समा गया हो। वह गजराज अर्जुन के बाण से संतप्त हो उठा। उसकी अन्तरात्मा व्यथित हो गयी और सारा शरीर काँपने लगा। जैसे वज्र का मारा हुआ पर्वत शिखर ढह जाता है, उसी प्रकार वह गजराज शिथिल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। उस विशाल हाथी के धराशायी हो जाने पर विकर्ण बहुत डर गया और सहसा कूद कर शीघ्रता पूर्वक भाग गया और आठ सौ पग चलकर विविंशति के रथ पर चढ़ गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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