महाभारत विराट पर्व अध्याय 65 श्लोक 11-18

पंचषष्टितम (65) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: पंचषष्टितम अध्याय: श्लोक 11-18 का हिन्दी अनुवाद

उस वज्र सदृश बाण द्वारा पर्वत तथा मेघों की घटा के समान प्रतीत होने वाले गजराज को मारकर पार्थ ने वैसे ही दूसरे बाण से दुर्योधन की छाती छेद डाली। इस प्रकार गजराज और कुरुराज दोनों के घायल होने तथा गजराज के पाद रक्षकों सहित विकर्ण के भाग जाने पर गाण्डीव धनुष से छूटे हुए सायकों की मार खाकर पीड़ित हुए समस्त मुख्य-मुख्य योद्धा सहसा मैदान छोड़कर भाग गये। अर्जुन के हाथ से गजराज मारा गया औश्र सम्पूर्ण योद्धा भी रण भूमि छोड़कर भाग रहे हैं, यह देखकर कुरुवंश का प्रमुख वीर दुर्योधन भी, जिस ओर अर्जुन नहीं थे, उसी दिशा में रथ घुमाकर भागा। उस समय दुर्योधन का रूप भयंकर हो रहा था। वह हार खाकर बाण से घायल हो रक्त वमन करता हुआ भागा जा रहा था। यह देखकर शत्रु का वेग सहन करने वाले किरीटधारी अर्जुन ने ताल ठोंकी और मन में युद्ध के लिये उत्साह रखते हुए वे शत्रु को ललकारने लगे।

अर्जुन बोले- धृतराष्ट्र के पुत्र! तू युद्ध से पीठ दिखाकर क्यों भागा जा रहा है? अरे! ऐसा करके तू अपनी कीर्ती और विशाल यष से हाथ धो बैठा है। आज तेरे विजय के बाजे पहले जैसे नहीं बज रहे हैं। तूने जिन्हें राज्य से उतार दिया है, उन्हीं महाराज युधिष्ठिर का आज्ञाकारी मैं तीसरा पाण्डव युद्ध के लिये खड़ा हूँ। अतः तू मेरा सामना करने के लिये लौटकर अपना मुँह तो दिखा। राजा का आचार-व्यवहार कैसा होना चाहिये, इसकी याद तो कर ले। व्यर्थ ही इस पृथ्वी पर तेरा नाम दुर्योधन रक्खा गया। तू तो युद्ध छोड़कर भागा जा रहा है; अतः यहाँ तुझमें दुर्योधन नाम के अनुरूप कोई गुण नहीं है। दुर्योधन! अच्छा, तेरे आगे या पीछे कोई रक्षक नहीं दिखायी देता। अतः वीर पुरुष! तू युद्ध से भाग जा और पाण्डु पुत्र अर्जुन के हाथ से आज अपने प्यारे प्राणों की रक्षा कर ले।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में दुर्योधन का युद्ध से पलायन विषयक पैंसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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