चतुर्दश (14) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्रीपर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद
अत: हित की बात बताने वाले वे महातपस्वी व्यास समय-समय पर अपनी पुत्रवधू के पास जा पहुँचे और शाप का अवसर उपस्थित करते हुए इस प्रकार बोले- ‘गान्धर राजकुमारी! शान्त हो जाओ। तुम्हें पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर पर क्रोध नहीं करना चाहिये। अभी-अभी जो बात मुँह से निकालना चाहती हो, उसे रोक लो और मेरी यह बात सुनो। ‘गत अठारह दिनों में विजय की अभिलाषा रखने वाला तुम्हारा पुत्र प्रतिदिन तुमसे जाकर कहता था कि ‘माँ! मैं शत्रुओं के साथ युद्ध करने जा रहा हूँ। तुम मेरे कल्याण के लिये आशीर्वाद दो’। ‘इस प्रकार जब विजयाभिलाषी दुर्योधन समय-समय पर तुमसे प्रार्थना करता था, तब तुम सदा यही उत्तर देती थीं कि जहाँ धर्म है, वहीं विजय है’। ‘गान्धारी! तुमने बातचीत के प्रसंग में भी पहले कभी झूठ कहा हो, ऐसा मुझे स्मरण नहीं है तथा तुम सदा प्राणियों के हित में तत्पर रहती आयी हो। ‘राजाओं के इस घोर संग्राम से पार होकर पाण्डवों ने जो युद्ध में विजय पायी है, इससे नि:संदेह यह बात सिद्ध हो गयी कि ‘धर्म का बल सबसे अधिक है’। ‘धर्मज्ञे! तुम तो पहले बड़ी क्षमाशील थी। अब क्यों नहीं क्षमा करती हो? अधर्म छोड़ो, क्योंकि जहाँ धर्म है, वहीं विजय है।‘मनस्विनी गान्धारी! अपने धर्म तथा कही की हुई बात का स्मरण करके क्रोध को रोको। सत्यवादिनि! अब फिर तुम्हारा ऐसा बर्ताव नहीं होना चाहिये’। गान्धारी बोली- भगवन! मैं पाण्डवों के प्रति कोई दुर्भाव नहीं रखती और न इनका विनाश ही चाहती हूँ; परंतु क्या करूँ? पुत्रों के शोक से मेरा मन हठात् व्याकुल-सा हो जाता है। कुन्ती के ये बेटे जिस प्रकार कुन्ती के द्वारा रक्षणीय हैं, उसी प्रकार मुझे भी इनकी रक्षा करनी चाहिये। जैसे आप इनकी रक्षा चाहते हैं, उसी प्रकार महाराज धृतराष्ट्र का भी कर्त्तव्य है कि इनकी रक्षा करें। कुरुकुल का यह संहार तो दुर्योधन, मेरे भाई शकुनि, कर्ण तथा दु:शासन के अपराध से ही हुआ है। इसमें न तो अर्जुन का अपराध है और न कुन्ती पुत्र भीमसेन का। नकुल-सहदेव और युधिष्ठिर को भी कभी इसके लिये दोष नहीं दिया जा सकता। कौरव आपस में ही जूझकर मारकाट मचाते हुए अपने दूसरे साथियों के साथ मारे गये हैं; अत: इसमें मुझे अप्रिय लगने वाली कोई बात नहीं है। परंतु महामना भीमसेन ने गदा युद्ध के लिये दुर्योधन को बुलाकर श्रीकृष्ण के देखते-देखते उसके प्रति जो बर्ताव किया है, वह मुझे अच्छा नहीं लगा। वह रणभूमि में अनेक प्रकार-के पैंतरे दिखाता हुआ विचर रहा था; अत: शिक्षा में उसे अपने से अधिक जान भीम ने जो उसकी नाभि से नीचे प्रहार किया, इनके इसी बर्ताव ने मेरे क्रोध को बढ़ा दिया है। धर्मज्ञ महात्माओं ने गदायुद्ध के लिये जिस धर्म का प्रतिपादन किया है, उसे शूरवीर योद्धा रणभूमि में किसी तरह अपने प्राण बचाने के लिये कैसे त्याग सकते हैं? इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्वके अन्तर्गत जलप्रदानिकपर्वमें गान्धारीकी सान्तवनाविषयक चौदहवॉं अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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