महाभारत आदि पर्व अध्याय 199 श्लोक 1-7

नवनवत्‍यधिकशततम (199) अध्‍याय: आदि पर्व (विदुरागमनराज्‍यलम्‍भ पर्व)

Prev.png

महाभारत: आदि पर्व: नवनवत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-7 का हिन्दी अनुवाद


पाण्‍डवों के विवाह से दुर्योधन आदि की चिन्‍ता, धृतराष्‍ट्र का पाण्‍डवों के प्रति प्रेम का दिखावा और दुर्योधन की कुमन्‍त्रणा

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्‍तर सब राजाओं को अपने विश्‍वनीय गुप्‍तचरों द्वारा यह यथार्थ समाचार मिल गया कि शुभलक्षणा द्रौपदी का विवाह पांचों पाण्‍डवों के साथ हुआ है। जिन महात्‍मा पुरुष ने वह धनुष लेकर लक्ष्‍य को वेधा था, वे विजयी वीरों में श्रेष्‍ठ तथा महान् धनुष-बाण धारण करने वाले स्‍वयं अर्जुन थे। जिस बलवान् वीर ने अत्‍यन्‍त कुपित हो मद्रराज शल्‍य को उठाकर पृथ्‍वी पर पटक दिया था और हाथ में वृक्ष ले रणभूमि में समस्‍त योद्धाओं को भयभीत कर डाला था तथा जिस महातेजस्‍वी शूरवीर को उस समय तनिक भी घबराहट नहीं हुई थी, वह शत्रुसेना के हाथी, घोड़े आदि अंगों की मार गिराने वाला तथा स्‍पर्शमात्र से भय उत्‍पन्‍न करने वाला महाबली भीमसेन था। ब्राह्मण का रुप धारण करके प्रशान्‍त भाव से बैठे हुए वे वीर पुरुष कुन्‍तीपुत्र पाण्‍डव ही थे, यह सुनकर वहाँ आये हुए राजाओं को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। उन्‍होंने पहले सुन रखा था कि कुन्‍ती अपने पुत्रोंसहित लाक्षागृह में जल गयी। अब उन्‍हें जीवित सुनकर वे राजा लोग यह मानने लगे कि इन पाण्‍डवों का फिर नया जन्‍म सा हुआ है। पुरोचन के किये हुए अत्‍यन्‍त क्रूरतापूर्ण कर्म का स्‍मरण हो आने से उस समय सभी नरेश कुरुवंशी धृतराष्ट्र तथा भीष्म को धिक्कारने लगे।

देखो न; धर्मात्‍मा, सदाचारी तथा माता के प्रिय एवं हित में तत्‍पर रहने वाले कुन्‍तीकुमारों को भी यह धृतराष्‍ट्र नष्‍ट करना चाहता है (भला, इससे बढ़कर निन्‍दनीय कौन होगा)।’ जनमेजय उधर स्‍वंयवर समाप्‍त होने पर धृतराष्‍ट्र के सभी पुत्र, जिन्‍हें कर्ण और शकुनि ने बिगाड़ रखा था, इस प्रकार सलाह करने लगे। शकुनि बोला- संसार में कोई शत्रु तो ऐसा होता है, जिसे सब प्रकार से दुर्बल कर देना उचित है; दूसरा ऐसा होता है जिसे सदा पीड़ा दी जाय। परंतु कुन्‍ती के वे सभी पुत्र तो समस्‍त क्षत्रियों के लिये समूल नष्‍ट कर देने योग्‍य हैं। इनके विषय में मेरा यही मत है। यदि इस प्रकार पराजित होकर आप सब लोग इन (पाण्‍डवों के विनाश की) युक्ति निश्चित किये बिना ही चले जायंगे, तो अवश्‍य ही यह भूल आप लोगों को सदा संतृप्‍त करती रहेगी। पाण्‍डवों को जड़ मूल सहित विनष्‍ट करने के लिये हमारे सामने यही उपयुक्‍त देश और काल उपस्थित है। यदि आप लोग ऐसा नहीं करेंगे तो संसार में उपहास के पात्र होंगे। ये पाण्‍डव जिस राजा के आश्रय में रहने की इच्‍छा रखते हैं, उस द्रुपद का बल और पराक्रम मेरी राय में बहुत थोड़ा है। जब तक वृष्णिवंश के श्रेष्‍ठ वीर यह नहीं जानते कि पाण्‍डव जीवित हैं, पुरुषसिंह चेदिराज प्रतापी शिशुपाल भी जब तक इस बात से अनभिज्ञ है, तभी तक पाण्‍डवों को मार डालना चाहिये।

राजन्! जब ये महात्‍मा राजा द्रुपद के साथ मिलकर एक हो जायंगें, तब इन्‍हें परास्‍त करना अत्‍यन्‍त कठिन हो जायगा, इसमें संशय नहीं है। जब तक राजा ढीले पड़े हैं, तभी तक हमें पाण्‍डवों के वध के लिये पूरा प्रयत्‍न कर लेना चाहिये। विषधर सर्प के मुख-सदृश भयंकर लाक्षागृह से तो वे बच ही गये हैं। यदि फिर हमारे हाथ से छूट जाते हैं तो उनसे हम लोगों को महान् भय प्राप्‍त हो सकता है। यदि वे वृष्णिवंशी और चेदिवंशी वीर यहाँ आ जायँ और यहाँ के नागरिक भी अस्‍त्र-शस्‍त्र लेकर खड़े हो जायं तो इनके बीच मे खड़ा होना उतना कठिन होगा, जितना आपस में लड़ते हुए दो विशाल मेढ़ों के बीच में ठहरना। जब तक हल धारण करने वाले बलराम जी के द्वारा संचालित बलवान् योद्धाओं की सेनाएं स्‍वयं ही आकर कौरव-सेनारुपी खेती पर टिड्डियों की भाँति टूट न पड़े, तब तक हम सब लोग एक साथ आक्रमण करके इस नगर को नष्ट कर दें। नरश्रेष्‍ठ वीरों! मैं इस अवसर पर यही सर्वोत्‍तम कर्तव्‍य मानता हूं! वैशम्‍पायन जी कहते हैं- दुर्बुद्धि शकुनि का यह प्रस्‍ताव सुनकर सोमदत्त कुमार भूरिश्रवा ने यह उत्तम बात कही।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः