महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 117 श्लोक 1-21

सप्तदशाधिकशततम (117) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

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महाभारत उद्योग पर्व: सप्तदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

दिवोदास का ययाति कन्या माधवी के गर्भ से प्रतर्दन नामक पुत्र उत्पन्न करना

  • मार्ग में गालव ने राजकन्या माधवी से कहा- भद्रे! काशी के अधिपति भीमसेनकुमार शक्तिशाली राजा दिवोदास महापराक्रमी एवं विख्यात भूमिपाल हैं। उन्हीं के पास हम दोनों चलें। तुम धीरे-धीरे चली आओ। मन में किसी प्रकार का शोक न करो। राजा दिवोदास धर्मात्मा, संयमी तथा सत्यपरायण हैं। (1-2)
  • नारदजी कहते हैं- राजा दिवोदास के यहाँ जाने पर गालव मुनि का उनके द्वारा यथोचित सत्कार किया गया। तदन्तर गालव ने पूर्ववत उन्हें भी शुल्क देकर उस कन्या से एक संतान उत्पन्न करने के लिए प्रेरित किया। (3)
  • दिवोदास बोले- ब्रह्मण! यह सब वृतांत मैंने पहले से ही सुन रखा है। अब इसे विस्तारपूर्वक कहने की क्या आवश्यकता है? द्विजश्रेष्ठ! आपके प्रस्ताव को सुनते ही मेरे मन में यह पुत्रोत्पादन की अभिलाषा जाग उठी है। (4)
  • यह मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है कि आप दूसरे राजाओं को छोड़कर मेरे पास इस रूप में प्राथी होकर आए हैं। नि: संदेह ऐसा ही भावी है। (5)
  • गालव! मेरे पास भी दो सौ ही श्यामकर्ण घोड़े हैं; अत: मैं भी इसके गर्भ से एक ही राजकुमार को उत्पन्न करूँगा। (6)
  • तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर विप्रवर गालव ने वह कन्या राजा को दे दी। राजा ने भी उसका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। (7)
  • राजर्षि दिवोदास माधवी में अनुरक्त होकर उसके साथ रमण करने लगे। जैसे सूर्य प्रभावती के, अग्नि स्वाहा के, देवेंद्र शची के, चंद्रमा रोहिणी के, यमराज धूमोर्णा के, वरुण गौरी के, कुबेर ऋद्धि के, नारायण लक्ष्मी के, समुद्र गंगा के, रुद्रदेव रुद्राणी के, पितामह ब्रह्मा वेदी के, वशिष्ठनंदन शक्ति अदृश्यन्ती के, वशिष्ठ अक्षमाला (अरुंधन्ती) के, च्यवन सुकन्या के, पुलस्त्य संध्या के, अगस्त्य विदर्भराजकुमारी लोपामुद्रा के, सत्यवान सावित्री के, भृगु पुलोमा के, कश्यप अदिति के, जमदग्नि रेणुका के, कुशिकवंशी विश्वामित्र हैमवती के, बृहस्पति तारा के, शुक्र शतपर्वा के, भूमिपति भूमि के, पुरूरवा उर्वशी के, ऋचिक सत्यवती के, मनु सरस्वती के, दुष्यंत शकुंतला के, सनातन धर्मदेव धृति के, नल दमयंती के, नारद सत्यवती के, जरत्कारु मुनि नागकन्या जरत्कारु के, पुलस्त्य प्रतीच्या के, ऊर्णायु मेनका के, तुम्बुरु रंभा के, वासुकि शतशीर्षा के, धनंजय कुमारी के, श्रीरामचंद्रजी विदेहनंदिनी सीता के तथा भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणी देवी के साथ रमण करते हैं, उसी प्रकार अपने साथ रमण करने वाले राजा दिवोदास के वीर्य से माधवी ने प्रतर्दन नामक एक पुत्र उत्पन्न किया। (8-18)
  • तदनन्तर समय आने पर भगवान गालव मुनि पुनः दिवोदास के पास आए और उनसे इस प्रकार बोले-(19)
  • ‘पृथ्वीनाथ! अब आप मुझे राजकन्या को लौटा दें। आपके दिये हुए घोड़े अभी आपके पास ही रहें। मैं इस समय शुल्क प्राप्त करने के लिए अन्यत्र जा रहा हूँ।' (20)
  • धर्मात्मा राजा दिवोदास अपनी की हुई सत्य प्रतिज्ञा पर अटल रहने वाले थे; अत: उन्होंने गालव को वह कन्या लौटा दी। (21)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अंतर्गत भगवद्यान पर्व में गालव चरित्र विषयक एक सौ सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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