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महाभारत: उद्योग पर्व: सप्तत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
धृतराष्ट्र के प्रति विदुर जी का हितोपदेश
- विदुरजी कहते हैं- राजेन्द्र! विचित्रवीर्यनंदन! स्वायम्भुव मनु ने इन सत्रह प्रकार के पुरुषों को आकाश पर मुक्कों से प्रहार करने वाले, न झुकाये जा सकने वाले, वर्षा कालीन इन्द्रधनुष को झुकाने की चेष्टा करने वाले तथा पकड़ में न आने वाली सूर्य की किरणों को पकड़ने का प्रयास करने वाले, बतलाया है [1] (1-2)
- पाश हाथ में लिये यमराज के दूत इन सत्रह पुरुषों को नरक में ले जाते हैं, जो शासन के अयोग्य पुरुष पर शासन करता है, मर्यादा का उल्लंघन करके संतुष्ट होता है, शत्रु की सेवा करता है, रक्षण के अयोग्य स्त्री की रक्षा करने का प्रयत्न करता है तथा उसके द्वारा अपने कल्याण का अनुभव करता है, याचना करने के योग्य पुरुष से याचना करता है तथा आत्मप्रशंसा करता है, अच्छे कुल में उत्पन्न होकर भी नीच कर्म करता है, दुर्बल होकर भी सदा बलवान से वैर रखता है, श्रद्धाहीन को उपदेश करता है, न चाहने योग्य [2] वस्तु को चाहता है, श्वसुर होकर पुत्रवधू के साथ परिहास पसंद करता है तथा पुत्रवधू से एकांतवास करके भी निर्भय होकर समाज में अपनी प्रतिष्ठा चाहता है, परस्त्री में अपने वीर्य का आधान करता है, मर्यादा के बाहर स्त्री की निंदा करता है, किसी से कोई वस्तु पाकर भी ‘याद नहीं है’, ऐसा कहकर उसे दबाना चाहता है, मांगने पर दान देकर उसके लिये अपनी श्लाघा करता है और झूठ को सही साबित करने का प्रयास करता है। (3-6)
- जो मनुष्य अपने साथ जैसा बर्ताव करे,उसके साथ वेसा ही बर्ताव करना चाहिये- यही नीतिधर्म है। कपट का आचरण करने वाले के साथ कपटपूर्ण बर्ताव करे और अच्छा बर्ताव करने वाले के साथ साधुभाव से ही बर्ताव करना चाहिये। (7)
- बुढ़ापा रूप का, आशा धैर्य का, मृत्यु प्राणों की, दूसरों के गुणों में दोषदृष्टि धर्माचरण का, काम लज्जा का, नीच पुरुषों की सेवा सदाचार का, क्रोध लक्ष्मी का और अभिमान सर्वस्व का ही नाश कर देता है। (8)
- धृतराष्ट्र ने कहा- विदुर! जब सभी वेदों में पुरुष को सौ वर्ष की आयु वाला बताया गया है, तब वह किस कारण से अपनी पूर्ण आयु को नहीं पाता? (9)
- विदुर जी बोले- राजन! आपका कल्याण हो। अत्यंत अभिमान, अधिक बोलना, त्याग का अभाव,क्रोध, अपना ही पेट पालने की चिंता और मित्रद्रोह- ये छ: तीखी तलवारें देहधरियों की आयु को काटती हैं। ये ही मनुष्यों का वध करती हैं, मूत्यु नहीं। (10-11)
- भारत! जो अपने ऊपर विश्वास करने वाले पुरुष की स्त्री के साथ समागम करता है, जो गुरुस्त्रीगामी है, ब्राह्मण होकर शूद्रा स्त्री के साथ विवाह करता है, शराब पीता है तथा जो ब्राह्मण पर आदेश चलाने वाला, ब्राह्मणों की जीविका नष्ट करने वाला, ब्राह्मणों को सेवा कार्य के लिये इधर-उधर भेजने वाला और शरणागत की हिंसा करने वाला है- ये सबके सब ब्रह्म हत्यारे के समान हैं; इनका संग हो जाने पर प्रायश्चित करे- यह वेदों की आज्ञा है। (12-13)
- बड़ों की आज्ञा मानने वाला, नीतिज्ञ, दाता, यज्ञशेष अन्न का भोजन करने वाला, हिंसा रहित, अनर्थपूर्ण कार्यों से दूर रहने वाला, कृतज्ञ, सत्यवादी और कोमल स्वभाव वाला विद्वान स्वर्गगामी होता है। (14)
- राजन! सदा प्रिय वचन बोलने वाले मनुष्य तो सहज में ही मिल सकते हैं; किंतु जो अप्रिय हुआ हितकारी हो, ऐसे वचन के वक्ता और श्रोता दोनों ही दुर्लभ हैं। (15)
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