महाभारत वन पर्व अध्याय 156 श्लोक 1-20

षट्पंचाशदधिकशततम (156) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: षट्पंचाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


पाण्डवों का आकाशवाणी के आदेश से पुन: नरनारायणाश्रम में लौटना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उस सौगन्धिक सरोवर के तट पर निवास करते हुए धर्मराज युधिष्ठिर ने एक दिन ब्राह्मणों तथा द्रौपदी सहित अपने भाइयों से इस प्रकार कहा- 'हम लोगों ने अनेक पुण्य-दायक एवं कल्याणस्वरूप तीर्थों के दर्शन किये। मन को आह्लाद प्रदान करने वाले भिन्न-भिन्न वनों का भी अवलोकन किया। वे तीर्थ और वन ऐसे थे, जहाँ पूर्वकाल में देवता और महात्मा, मुनि विचरण कर चुके हैं तथा क्रमश अनेक द्विजों ने उनका समादर किया है। हमने ऋषियों के पूर्वचरित्र, कर्म और चेष्टाओं की कथा सुनी है। राजर्षियो के भी चरित्र और भाँति-भाँति की शुभ कथाएं सुनते हुए मंगलमय आश्रमों में विशेषतः ब्राह्मणों के साथ तीर्थस्नान किया है। हमने सदा फूल और जल से देवताओं की पूजा की है और यथाप्राप्त फल-मूलसे पितरों को भी तृप्त किया है।

रमणीय पर्वतों और समस्त सरोवर में विशेषतः परम पुण्यमय समुद्र के जल में इन महात्माओं के साथ भलीभाँति स्नान एवं आचमन किया है। इला, सरस्वती, सिंधु, यमुना तथा नर्मदा आदि नाना रमणीय तीर्थों में भी ब्राह्मणों के साथ विधिवत् स्नान और आचमन किया है। गंगाद्वार (हरिद्वार) को लांघकर बहुत-से मंगलमय पर्वत देखे तथा बहुसंख्यक ब्राह्मणों से युक्त हिमालय पर्वत का भी दर्शन किया। विशाल बदरीतीर्थ, भगवान् नर-नारायण के आश्रम तथा सिद्धों और देवर्षियों से पूजित इस दिव्य सरोवर का भी दर्शन किया। विप्रवरो! महात्मा लोमश जी ने हमें सभी पुण्य स्थानों के क्रमश: दर्शन कराये हैं। भीमसेन! यह सिद्धसेवित पुण्य-प्रदेश कुबेर का निवास स्थान है। अब हम कुबेर के भवन में कैसे प्रवेश करेंगे? इसका उपाय सोचो'।

वैशम्पायन जी कहते हैं- महाराज युधिष्ठिर के ऐसा कहते ही आकाशवाणी बोल उठी- 'कुबेर के इस आश्रम से आगे जाना सम्भव नहीं है। यह मार्ग अत्यन्त दुर्गम है। राजन्! जिससे तुम आये हो, उसी मार्ग से विशाला बदरी के नाम से विख्यात भगवान् नर-नारायण के स्थान को लौट जाओ। कुन्तीकुमार! वहां से तुम प्रचुर फल-फूल से सम्पन्न वृषपर्वा के रमणीय आश्रम पर जाओ, जहाँ सिद्ध और चारण निवास करते हैं। उस आश्रम को भी लांघकर आर्ष्टिषेण के आश्रम पर जाना और वहीं निवास करना। तदनन्तर तुम्हें धनदाता कुबेर के निवास स्थान का दर्शन होगा'।

इसी समय दिव्य सुगन्ध से परिपूर्ण पवित्र वायु चलने लगी, जो शीतल तथा सुख और आह्लाद देने वाली थी। साथ ही वहाँ फूलों की वर्षा होने लगी। वह दिव्य आकाशवाणी सुनकर सबको बड़ा विस्मय हुआ। ऋषियों, ब्राह्मणों और विशेषतः राजर्षियों को अधिक आश्चर्य हुआ। वह महान् आश्चर्यजनक बात सुनकर विप्रर्षि धौम्य ने कहा- 'भारत! इसका प्रतिवाद नहीं किया जा सकता। ऐसा ही होना चाहिये'। तदनन्तर राजा युधिष्ठिर ने वह आकाशवाणी स्वीकार कर ली और पुनः नर-नारायण के आश्रम में लौटकर भीमसेन आदि सब भाइयों और द्रौपदी के साथ वहीं रहने लगे। उस समय साथ आये हुए ब्राह्मण लोग भी वहीं सुखपूर्वक निवास करने लगे।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में लोमशतीर्थयात्रा के प्रसंग में पाण्डवों का पुनः नर-नारायण के आश्रममें आगमन विषयक एकसौ छप्पनवाँ अध्याय पूरा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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