महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 1-19

एकोनविंशत्यधिकशततम (119) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


कौरव पक्ष के प्रमुख महारथियों द्वारा सुरक्षित होने पर भी अर्जुन का भीष्म को रथ से गिराना, शरशय्या पर स्थित भीष्म के समीप हंसरूपधारी ऋषियों का आगमन एवं उनके कथन से भीष्म का उत्तरायण की प्रतीक्षा करते हुए प्राण धारण करना

संजय कहते हैं- राजन! इस प्रकार शिखण्डी को आगे करके सभी पाण्डवों ने समर भूमि में भीष्म को सब ओर से घेरकर बींधना आरम्भ किया। समस्त सृंजय वीर एक साथ संगठित हो भयंकर शतघ्नी, परिघ, फरसे, मुद्गर, मूसल, प्रास, गोफन, स्वर्णमय पंख वाले बाण, शक्ति, तोमर, कम्पन, नाराच, वत्सदन्त और भुशुण्डी आदि अस्त्र-शस्त्रों द्वारा रणभूमि में भीष्म को सब ओर से पीड़ा देने लगे। उस समय बहुसंख्यक योद्धाओं के द्वारा अनेक प्रकार के अस्त्रों से पीड़ित होने के कारण भीष्म का कवच छिन्न-भिन्न हो गया। उनके मर्मस्थान विदीर्ण होने लगे, तो भी उनके मन में व्यथा नहीं हुई। वे शत्रुओं के लिये प्रलयकाल की अग्नि के समान अद्भुत तेज से प्रज्वलित हो उठे।

धनुष और बाण ही धधकती हुई आग थे। अस्त्रों का प्रसार ही वायु का सहारा था। रथों के पहियों की घरघराहट उस आग की आंच थी। बड़े-बड़े अस्त्रों का प्राकट्य अंगार के समान था। विचित्र चाप ही उस आग की प्रचण्ड ज्वालाओं के समान था। बड़े-बड़े वीर ही ईधन के समान उसमें गिरकर भस्म हो रहे थे। पितामह भीष्म एक ही क्षण में रथ की पंक्ति तोड़कर घेरे से बाहर निकल आते और पुनः राजाओं की सेना के मध्य भाग में प्रवेश करके वहाँ विचरते दिखायी देते थे। प्रजानाथ! तत्‍पश्चात द्रुपद तथा धृष्टकेतु की कुछ भी परवाह नहीं करके वे पाण्डव सेना के भीतर घुस आये। फिर भयंकर शब्द करने वाले, महान वेगशाली, मर्मस्थानों और कवचों को भी विदीर्ण कर देने वाले, तीखे एवं उत्तम बाणों द्वारा उन्होंने सात्यकि, भीमसेन, पाण्डुपुत्र अर्जुन, विराट, द्रुपद तथा उनके पुत्र धृष्टद्युम्न- इन छः महारथियों को अत्यन्त घायल कर दिया।

तब उन महारथी वीरों ने भीष्म के उन तीखें बाणों का निवारण करके पुनः दस-दस बाणों द्वारा भीष्म को बलपूर्वक पीड़ित किया। महारथी शिखण्डी ने जिन महान बाणों का प्रयोग किया था, वे सब सुवर्णमय पंख से युक्त और शिला पर रगड़कर तेज किये गये थे, तो भी भीष्म जी के शरीर में घाव या पीड़ा नहीं उत्पन्न कर सके। तब किरीटधारी अर्जुन ने कुपित हो शिखण्डी को आगे किये हुये ही भीष्म पर धावा किया और उनके धनुष को काट डाला। भीष्म के धनुष का काटा जाना कौरव महारथियों को सहन नहीं हुआ। द्रोण, कृतवर्मा, सिन्धुराज जयद्रथ, भूरिश्रवा, शल, शल्य और भगदत्त- ये सात महारथि अत्यन्त क्रुद्ध हो किरीटधारी अर्जुन की ओर दौड़े तथा अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन करते हुए पाण्डुनन्दन अर्जुन को अत्यन्त क्रोधपूर्वक बाणों से आच्छादित करने लगे। अर्जुन के प्रति आक्रमण करते हुए उन वीरों का सिहंनाद उसी प्रकार सुनायी पड़ा, जैसे प्रलयकाल में अपनी मर्यादा छोड़कर बढ़ने वाले समुद्रों की भीषण गर्जना सुनायी पड़ती है। अर्जुन के रथ के समीप ‘मार डालो, ले आओ, पकड़ लो, बींध डालो, टुकड़े-टुकड़े कर दो’ इस प्रकार भयंकर शब्द गूंजने लगा। भरतश्रेष्ठ! उस भयानक शब्द को सुनकर पाण्डव महारथी अर्जुन की रक्षा के लिये दौड़े।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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